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           "क्या मम्मी आप भी जरा-जरा सी बातों पर तुनक पड़ती हो,पूरा आसमान सिर पर उठा लेती हो.पापा के दोस्तों के बीच में ही तो थीं आप   वे लोग कोई जानवर तो नहीं,हँसी-मजाक ही तो किया चीर हरण तो नहीं.."सुनकर खून उतर आया था उसकी आँखों में,अपनी ही लाठी,अपने पर वार,तिलमिलाते हुए पलकें बंद कर ली तो दर्द आंसू बन बह निकला.वह सोचने लगी,

     'उम्र की पहली फसल बाबा की अँगुलियों में अटक गई,सतरंगी सपने उड़े भी न थे कि उम्र की दूसरी फसल बिन हवा-पानी घूँघट में उजड़ गई और तीसरी को तो चौराहे पर ही चरने के लिए रख दी गई और अब तो उम्मीद की चौथी फसल भी हाथ से फ़िसल गई.'मन ही मन वह बुदबुदाई "अपनी ही बिछाई बिसात है, अपने ही मोहरों से पिटना -उजडना युगों का इतिहास है.अत;अब भी सांस लेनी सूरज के अंत तक.  

    { मौलिक एवंम अप्रकाशित रचना }

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Comment by rajesh kumari on November 5, 2015 at 8:42pm

उफ्फ्फ बहुत मार्मिक कथा लिखी है आपने .स्त्री जीवन काँटों पर ही चलता आया चलता रहेगा ...सूरज रहने तक ..हार्दिक बधाई आपको आशा जी .

Comment by asha jugran on November 5, 2015 at 12:31pm

बहुत-बहुत् धन्यवाद आद० मिथलेश वामनकर जी,आद०तेजवीर सिंह जी और आद० प्रतिभा जी ,रचना पर प्रतिक्रिया  देने के लिए आभार 

Comment by pratibha pande on November 2, 2015 at 5:48pm

बेहतरीन लघु कथा हुई है ,हार्दिक बधाई आपको  आदरणीया आशा जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2015 at 10:05am

हार्दिक बधाई आदरणीय आशा जुगरान जी!बेहतरीन और सशक्त प्रस्तुति!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 9:51pm

आदरणीया आशा जी प्रतिको के माध्यम से आपने नारी जीवन के भूत वर्मन और भविष्य को साकार कर दिया. शानदार प्रस्तुति. हार्दिक बधाई 

Comment by asha jugran on November 1, 2015 at 9:13pm

कथा को बारीकी से विश्लेषित करने के लिए आभार,शेख शहजाद उस्मानी जी.

Comment by asha jugran on November 1, 2015 at 9:10pm

बहुत-बहुत धन्यवाद शिज्जू शकूर जी.

Comment by asha jugran on November 1, 2015 at 9:09pm

आपने  कथा को बिल्कुल सही पकड़ा है,सविता जी .सुन्दर व्याख्या के लिए आभार 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2015 at 8:11pm
बहुत सुंदर शिल्प में प्रतीकों के माध्यम से नारी जीवन के विभिन्न पड़ावों के कड़वे अनुभव चित्रित कर उत्कृष्ट लघु कथा का सृजन हुआ है । हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया आशा जुगरान जी।

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 1, 2015 at 7:48pm
बहुत बढ़िया अति आधुनिकता के विकृत स्वरूप को खूब शब्द दिया है आपने

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