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ग़ज़ल :- जान के दावेदार थे सदमे

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़ाइलुन/फ़ेलान

जान के दावेदार थे सदमे
मै अकेला, हज़ार थे सदमे

इस क़दर पाइदार थे सदमे
मेरे हमदम थे,यार थे सदमे

मेरे दिल में मुक़ीम हैं अब तो
कल तलक बे दियार थे सदमे

कोई भी बच नहीं सका इन से
सब के दिल पर सवार थे सदमे

कोई तामीरी काम , नामुम्किन
सारे तख़रीब कार थे सदमे

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में
सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे

सोच ने मेरी इनको जन्म दिया
ज़ह्न का ख़लफ़िशार थे सदमे

आस्तीनों में छुप के आए 'समर'
किस क़दर होशियार थे सदमे

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 807

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Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 11:02pm
जनाब जान गोरखपुरी जी,आदाब,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:59pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,इसमें अन्यथा लेने जैसी कोई बात ही नहीं,आप अपना हक़ मुझसे माँग रहे हैं ,मुझे याद पड़ता है कि इस बारे में आप पहले भी मुझे कह चुके हैं,अब मंच को इस शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:54pm
मोहतरमा प्राची सिंह जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:53pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:51pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:51pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:49pm
जनाब रवि शुक्ल जी,आदाब,"नज़्म" मौज़ूआती होती है,इसलिये एक ही ख़याल के गिर्द घूमती है,लेकिन ग़ज़ल का हर शैर इकाई का दर्जा रखता है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 2, 2015 at 10:44pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 10:59am

आह!  लाजव़ाब! आप का जवाब नही समर सर! दाद ही दाद पेश है हर शेर पर! काश ये गज़ल मेरी होती....गज़ब ढा दिया दिल जला गई..

जान के दावेदार थे सदमे
मै अकेला, हज़ार थे सदमे.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 10:56am

आदरणीय समर जी ..आपकी रचना को बार बार पढ़कर तमाम कुछ सीखने को मिलता है ..आपकी रचनाओं में उर्दू के शब्दों का शानदार प्रयोग किया जाता है लेकिन बहुत से शब्दों के अर्थ न मालूम होने से दिक्कत होती है आप यदि ऐसे शब्दों के अर्थ भी लिख दें तो हमें एक शानदार ग़ज़ल के रसास्वादन का और भरपूर मौका सहज हे मिल सकेगा ..यह मेरा निवेदन है अन्यथा मत लीजियेग ..रचना पर ढेर सारी बधाई सादर नमन के साथ 

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