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उसकी देह अब भी मांसल है / अतुकांत कविता

सोनाली भट्टाचार्य एवं सभी तेजाब पीड़ितों के लिए 

वह एक लड़की थी
उन्नत नितंबों
पुष्ट उरोजों वाली
श्यामल घनेरे केश
बल खाते पर्वतों के बीच
लहराते
लगता बाढ़ की पगलाई नदी
मेघों के मध्य
घाटी में से गुजर रही हो
खुलकर खिलखिला कर हँसती
कई सितार एक साथ झंकृत हो उठते
उसके सपनों में आता
फिल्मी राजकुमार
जिसके साथ वह
गीत गाती झूमती नाचती
फूलों के बाग में
स्कूल कॉलेज से आती जाती
सबकी निगाहों की केंद्र बिन्दु
सबके लिए स्पृह्यनीय
फिर एक दिन
कुछ उछृंखल हाथों ने तोड़ दिये
सितार के तन्तु
सबने ने फेर ली निगाहें
वैसे उसकी देह अब भी मांसल है
नितंब उन्नत हैं
उरोजों में पुष्टता है
पर कोई नहीं रखता अब
उसे पाने की चाहत
उसकी आँखों पर पड़ा है अब
एक बड़ा चश्मा
और चेहरा दुपट्टे से ढँका है ।
.................. नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 17, 2015 at 10:35pm

आपका बहुत आभार आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव जी ....

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 17, 2015 at 10:03am

Marmik- aur sabhya samaj ke liye ek sochne waalee rachna

Comment by Neeraj Neer on September 17, 2015 at 9:39am

आदरणीय गिरिराज जी आपके  इस प्रोत्साहन हेतू अनेक धन्यवाद 


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 7:25am

आदरनीय नीरज भाई , आज कल यदा कदा घट ही जा रही घटना को बहुत मार्मिक शब्द दिये हैं आपने । हार्दिक बधाई रचना के लिये

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2015 at 11:59am

आपका धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब ... 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2015 at 11:58am

रचना को पसंद करने एवं सराहना के लिए आपका अनेक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पांडे जी ...... 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2015 at 11:57am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर साहब। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:23am

नीर जी आपकी कविता एक सवेदनशील विषय पर है  पर नारी के उद्देपन  स्वरुप को कुछ और मर्यादित रखते तो बेहतरीन रचना बन जाती फिर भी आपको बधाई

Comment by pratibha pande on September 16, 2015 at 9:37am

आपकी रचना का मर्म  एक बहुत ही संवेदनशील विषय को कहता है और कई स्थापित धारणाओं को भी नकारता है ,विषय कडवा सच है और ट्रीटमेंट भी बोल्ड , बधाई आपको सादर  

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2015 at 9:35am
बहुत ही सराहनीय रचना है , आदरणीय नीरज कुमार " नीर " जी , बधाई, सादर।

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