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चाय पिला पिला कर ,
लोगो की सेवा वो करता रहा,
महज़ चार चाय की कीमत पर ,
मालिक उसको छलता रहा,
भूखी अंतड़िया ,
क्या जाने चाय की तलब ,
दो रोटियां, चोखे संग,
पाने को पेट जलता रहा ,
बैठे चायखाने मे
खादी पहने
कुछ उच्च शिक्षित लोगों के मध्य
"बाल मजदूरी ठीक नहीं",
यही मुद्दा चलता रहा ,
कैसे रोके , कैसे टोके ,
सरकार अपनी है निकम्मी,
बातो बातो में
राजनीतिक विवादों में
घंटो निकलता रहा,
फिर चाय की तलब लगी,
तो छोटू की पुकार हुई,
एक बार फिर कड़क चाय पिलाना,
चाय पिला कर सारा दिन छोटू,                                                                                             (चित्र गुगल से साभार)
जूठे बर्तन घिसता रहा,

(मैं बहुत बहुत आभारी हू भाई श्री राणा प्रताप जी का जिनके सहयोग से मैं यह कविता लिख सका हू|)

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Comment by Satyendra Kumar Upadhyay on June 19, 2010 at 1:38pm
Ganesh Ji bahut badhiya likhale baani, aa Logan ke samane sachhai le aayil baani, Bihar, Udisa, Kolakata hokhe chahe punjab, Haryana aa Delhi, har jagah Shoshan hote baa garib ke
Comment by Raju on June 19, 2010 at 12:51pm
bahut hi achhi aur satyata se bhari kavita aapne likhi hai GANESH BHAIYA..........
Comment by दुष्यंत सेवक on June 16, 2010 at 11:47am
bagi ji, ek jwalant mudde par apki seedhi saral bhasha ne ek naya prakash dala hai nishchay hi jo bhi is abhishap ke jimmedar hain unhe chahe vo abhibhavak hai tatha neeti niyanta hain ab is disha me thos kadam uthane ki jarurat hai. apki panktiyan mashal ka kaam kare aisi asha hai. achchi rachna ke liye badhai bagi ji, achchi kavita achcha prayas
Comment by Anand Vats on June 16, 2010 at 10:53am
बागी जी एक बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई | उम्मीद है इस रचना को पढ़कर हम सब लोग इस अभिशाप से निजात के लिए अपने अपने स्तर पर प्रयास करेंगे |

बाल मजदूर को पूर्ण रूप से समाप्त करने का अर्थ होगा लाखों बच्चों से उनकी रोजी-रोटी को छिन लेना और ये तब अपराध से जुड़ने को मजबूर होंगे। यद्यपि इस समस्या को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन यदि प्रयास किये जाएं तो कुछ सीमा तक हम उन्हे राहत दिला सकते है। ऐसे बच्चों को उनके कार्यावधि को कम करके पढ़ने के लिए सुविधाएं तथा उचित मजदूरी दी जाए|

मंदसौर जिले के स्लेट पेंसिल उद्योग में इसकी की खुदाई से लेकर उसकी कटाई करने तक से उड़ने वाली सिलिकान डाई आक्सॉइड फेफड़ों में प्रवेश करने के कारण १० हज़ार बाल मजदूरों को सिलिकोसिस रोग हुआ है।
Comment by satish mapatpuri on June 14, 2010 at 11:32am
"बाल मजदूरी ठीक नहीं",
यही मुद्दा चलता रहा ,
कैसे रोके , कैसे टोके ,
सरकार अपनी है निकम्मी,
बातो बातो में
राजनीतिक विवादों में
घंटो निकलता रहा,
फिर चाय की तलब लगी,
तो छोटू की पुकार हुई,
एक बार फिर कड़क चाय पिलाना
प्रिय श्री, आपकी कविता आद्धोपांत पढ़ा. आपको और राणा जी को बहुत-बहुत बधाई. गणेश जी, आपमें कवि-तत्व निःसंदेह मौजूद है. कोई भी कवि बनता नहीं- हो जाता है. बहुत बार ऐसा होता है कि इंसान को अपनी आंतरिक प्रतिभा का भान नहीं होता है, जब अनुकूल माहौल मिलता है तो वह स्वतः बाहर आ जाती है. क्रौच- वध से आहत बाल्मीकि के मुख से अनायास कविता फुट पड़ी थी. एक बार फिर बधाई देते हुए मै यही कहूंगा कि -कस्तूरी कुंडल बसे , मृग ढूंढे वन मांहि.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 13, 2010 at 9:44am
परम आदरणीया गुड्डो दादी,आशा दीदी, जूली जी,आदरणीय योगराज भईया,रवि भईया, बबन भईया,सुनील पांडे जी,अजीत कुमार सिन्हा जी, प्रिय छवि चौरसिया जी,राणा जी एवम् बिरेश भाई, आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद है जो आप सब ने मेरी रचना को सराहा और मेरा हौसला अफजाई किया,
Comment by baban pandey on June 13, 2010 at 6:33am
गणेश भाई , इसी को कहते है , छुपे रुस्तम ..आज जाना कि छुपा रुस्तम क्या होता है ..गणेश भाई ...एक बात तो हमलोगों को मन से निकाल देनी चाहिए कि सिर्फ ...ख्याति लब्ध कवि ही अच्छी रचनायें दे सकते है ...बधाई
Comment by Ajit kumar sinha on June 12, 2010 at 7:41pm
koi sanka nahi dil ko chu lene wali kavita hai, bakai aap kuch karna cahte hai un baccho ke liye to unke rahne, khane or padhne ka upay karayee, ya gov system se inke utthan ka prayas kare, logo ke dhyan aakarsan ka prayas aacha hai but ye baat bhi wahi hai jo chai dukan me baithe log karte hai ki bal majdoori samajik aapradh hai jaise baate bolte hain or thori der baad chootu chai lana bolte hai. jaroorat hai sahi disa me prayas karne ki sayad main bhi bhasan de gaya but jo dil me aaya bol diya maaf kijyega
Comment by Rash Bihari Ravi on June 12, 2010 at 6:15pm
कुछ उच्च शिक्षित लोगों के मध्य
"बाल मजदूरी ठीक नहीं",
यही मुद्दा चलता रहा ,
कैसे रोके , कैसे टोके ,
सरकार अपनी है निकम्मी,
बातो बातो में
राजनीतिक विवादों में
घंटो निकलता रहा,
फिर चाय की तलब लगी,
तो छोटू की पुकार हुई,
एक बार फिर कड़क चाय पिलाना,
jai ho aur main kya bolu sab kuch hain isme
Comment by asha pandey ojha on June 12, 2010 at 6:08pm
waah ganish bhaiya ....is peeda ko abhivyakti dene ke liye sadhuwaad ..srkaar kya kare ..inkee mazburiyan in se bacpan chheen letee hai ...agar ye kaam n karen to sithiti or bdhaal ho jayegee ..bahut achchhee rachna likee hai aapne badhai ..

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