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इतना तो काम आप को करना पड़ेगा जी -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

221—2121—1221-212

 

इतना तो काम आप को करना पड़ेगा जी

जन्नत जो देखना है तो मरना पड़ेगा जी

 

माना कि बादशाहे-आसमां है वो मगर

खुर्शीद को उफ़क में उतरना पड़ेगा जी

 

हर जानवर में बंट गई महलों की रोटियाँ

फिर आम आदमी को तो चरना पड़ेगा जी

 

ये ज़िन्दगी है नाव, समुन्दर है ये जहां

अब वक़्त की पतवार से तरना पड़ेगा जी

 

अफसर है वे,  न मानिए कोई मज़ाक है

कितना भी दम हो आपमें, डरना पड़ेगा जी

 

यादों के इस भंवर में मुहब्बत के वासिते

तुमको नफस-नफस में बिखरना पड़ेगा जी

 

आया रहम गरीब पे अच्छा है ये मगर 

बस आसमां से आज उतरना पड़ेगा जी

 

वैसे तो दाखिली ही नहीं कू-ए-यार में

ये है शबे-हयात गुजरना पड़ेगा जी

 

है जिंदगी, ये ताजमहल तो नहीं हजूर

कुछ सादगी में रंग तो भरना पड़ेगा जी

 

ये तै रहा कि आप है कश्ती और आपको

दरिया में एक रोज़ उतरना पड़ेगा जी

 

चेह्रा जो सामने है नए दौर का, सुनो

ये आइना है, इसमें सँवरना पड़ेगा जी

 

उसने हरेक सच जो कहा है  जुनून में

हर बात से उसे भी मुकरना पड़ेगा जी

 

मैं जानता हूँ आब हूँ मुझको ही हर दफा

गम-ओ-ख़ुशी के बीच निथरना पड़ेगा जी

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 3:38pm

आदरणीय सुशील सरना सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2015 at 3:17pm

हर जानवर में बंट गई महलों की रोटियाँ
फिर आम आदमी को तो चरना पड़ेगा जी

वाह आदरणीय मिथिलेश जी वाह -बहुत ही गहन भावों को अभिव्यक्त करते हर शे'र पर हमारी बधाई कबूल फरमाएं।

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