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भयंकर भूल – (लघुकथा)

 महाराज युधिष्ठिर अपने  कक्ष में   सामंतों के साथ व्यस्त थे!तभी बाह्य द्वार पर युद्ध विजय के विजय घोष और शंख, नगाडे,ढोल आदि वाद्यों की आवाज़ हुई!युधिष्ठिर बाहर आये तो देखा कि लघु भ्राता भीम वाद्य-यंत्र वादकों को  निर्देश दे रहे थे!

"भ्राता भीम, अभी कोई युद्ध नहीं हुआ और ना  कोई युद्ध विजय  तो यह वाद्य यंत्र क्यों बजाये जा रहे हैं"!

"महाराज, क्षमा करें, आज आपने युद्ध से भी बडी विजय प्राप्त की है"!

"हम आपका आशय समझने में असमर्थ है, भ्राता भीम"!

"महाराज, अभी आपके पास जो विप्र आये थे, आपने उनको कल आने का आदेश दिया , इसका तात्पर्य यह हुआ कि आपने काल पर विजय प्राप्त कर ली, आप तो काल-जयी हो गये, अतः  विजय घोष तो होना ही चाहिये"!

"भ्राता भीम, आपने हमारी आंखें खोल दी, हम भयंकर भूल करने जा रहे थे!

हम स्वयं  विप्र महोदय के पास जायेंगे , क्षमा मांगेगे एवम उनकी समस्या हल करेंगे"!

.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on September 2, 2015 at 2:06pm

आदरणीय तेज़वीर जी बहुत ही गूढ़ अर्थ लिए प्रभावशाली लघु कथा बन पड़ी है। दिल से दाद कबूल फरमाएं आदरणीय। 

Comment by Omprakash Kshatriya on September 2, 2015 at 1:17pm
आ तेज वीर जी आप बहुत ही दूर की कौड़ी ढूढ़ कर लेट है । बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:45pm

अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय तेज वीर जी

Comment by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 12:07pm

संदेशप्रद रचना हेतु बधाई आदरणीय 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 2, 2015 at 11:29am

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पान्डे जी!लघुकथा को समय देने के लिये और सराहने के लिये!पहले मैंने काल-जयी नाम ही सोचा था, फ़िर मुझे लगा कि काल जयी तो वे हुए ही नहीं,यही तो उनकी भूल थी जिसका अहसास भीम ने इस तरह से कराया और वे यह भयंकर भूल करने से बच गये!लघुकथा का आशय मात्र इतना है कि आज का काम कल पर मत टालो!सादर!

Comment by pratibha pande on September 2, 2015 at 9:59am
आदरणीय तेज़ वीर जी बहुत प्रभावशाली कथा है ,आप इसका शीर्षक अगर 'काल जयी'कर दें तो मेरे अनुसार प्रभाव दुगुना हो जायेगा

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