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चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले

2212 1222 2222 12
...
चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,
वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |

ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,  
हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |

बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,
हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |

वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,
हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |


इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,
ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही मिले |


"मौलिक व अप्रकाशित" © हर्ष महाजन

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on August 30, 2015 at 8:04am
आदरनीय कांता रॉय जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए मैं हृदय ताल से आभारी हूँ । सादर !!
Comment by kanta roy on August 28, 2015 at 10:23pm

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,
वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |.... आजमइशों की क्या बात कही है आपने आदरणीय हर्ष जी। .... बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए

Comment by Harash Mahajan on August 28, 2015 at 12:53pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी तहरीर की पसंदगी के लिए मैं बहुत बहुत आभारी हूँ सर !! शुक्रिया !!

Comment by Harash Mahajan on August 28, 2015 at 12:52pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी मोहब्बतों के लिए तहेदिल से शुक्रिया लेकिन सर आपकी वेवेचना के बिना पूरी ग़ज़ल अधूरी है | मेरी इस छोटी सी तहरीर को आपकी कलम के हुस्न का इंतज़ार रहेगा | सादर !!

Comment by narendrasinh chauhan on August 28, 2015 at 10:21am

सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 1:38am

आदरणीय हर्ष जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Harash Mahajan on August 27, 2015 at 10:05pm

आदरणीय maharshi tripathi जी आप मेरी इस पेशकश पर आकर मेरे पेश्कर्दा अहसास समझने की कोशिश कर के जो इज्ज़त अफजाई की उसके लिए ह्रदय ताल  से आभारी हूँ....मुझ से ये भूल हुई इन लफ़्ज़ों के  मतलब मुझे पहले ही लिख देने चाहिए थे |
ज़ब्रो ज़फ़ा = ज़बरदस्ती और अन्याय...
क़ाबे - House Of Allah In Mecca

शायद अब इस नाचीज़ के अहसास ज़हन में उतरने में सहायता होगी......एक बार फिर शुक्रिया !! सादर !!

Comment by maharshi tripathi on August 27, 2015 at 9:02pm

आ. Harash Mahajanजी ,काफी मसक्कत करनी पड़ रही है आपकी गजल समझने हेतु कुछ शेर ही समझ पाया ,,कुछ सब्दों के अर्थ अगर मिल जाते तो सायद कुछ समझ पता ,ज़ब्रो ज़फ़ा,काबे,

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