For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

बह्र : २२ २२ २२ २२

 

श्रोडिंगर ने सच बात कही

हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

 

इक दिन मिट जाएगी धरती

क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?

 

उस मछली ने दुनिया रच दी

जो ख़ुद जल से बाहर निकली

 

कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही

अपवित्र हो गए शब्द कई

 

जिस दिन रोबोट हुए चेतन

बन जाएँगें हम ईश्वर भी

 

मस्तिष्क मिला बहुतों को पर

उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली

 

मैं रब होता, दुनिया रचता

इस से अच्छी, इस से जल्दी

----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 9:59am

शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 9:59am

शुक्रिया आदरणीय समर साहब।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 9:58am

शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी। इस शे’र को कहने का तात्पर्य इतना ही है कि इस गरीबी, गैरबराबरी, भूख, लाचारी, दुख से भरी हुई दुनिया से बेहतर दुनिया रची जा सकती थी और मैं रब होता तो इससे बेहतर दुनिया रच देता और इसे रचने में मुझे अरबों वर्षों का समय भी नहीं लगता।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 8:47pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आ० धर्मेन्द्र जी ,हार्दिक बधाई आपको 

मस्तिष्क मिला बहुतों को पर

उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली----वाह्ह्ह 

 

Comment by दिनेश कुमार on August 18, 2015 at 5:37pm
आ.भाई धर्मेंद्र जी, इस गजल के लिए हार्दिक बधाई.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:34am

आ0 भाई धर्मेंद्र जी, इस गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on August 17, 2015 at 3:29pm
आ0 धर्मेन्द्र जी एक अच्छी पेशकश ।दाद क़बूल कीजियेगा ।
Comment by Samar kabeer on August 17, 2015 at 2:55pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,इस प्रस्तुति के लिये दाद क़ुबूल फरमाएं। जनाब मिथिलेश जी की बात से मैं भी सहमत हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 12:47pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, छोटी बह्र की बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. इस एक शेर के हो जाने या लिखे जाने का तात्पर्य नहीं समझ आया.

मैं रब होता, दुनिया रचता

इस से अच्छी, इस से जल्दी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service