For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ट्रॉफी [लघु कथा]

"बधाई कर्नल कपूर i बेटे ने नाम रौशन कर दिया " कमांडेंट साहब ने गर्म जोशी से कर्नल से हाथ मिलाते  हुए कहा

 

"थैंक्यू सर "

 

आकाश देख रहा था अपने पिता को जो गर्व से फूले फिर रहे थे अपने ऑफिसर्स दोस्तों के बीच और सबकी बधाइयाँ ले रहे थे

 

उसके  काव्य संकलन को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला था ,हफ्ते भर से टीवी ,अखबारों में उसी के चर्चे थे

 

वो सोचने लगा .. ,' उसके जैसा  नाकारा बेटा जो आर्मी में नहीं गया ,  जिसने हिंदी साहित्य विषय चुना  और जो कविताएँ लिखता है वो भी हिंदी में ... आज अचानक कैसे सबके आकर्षण  का केंद्र बन गया ... और पापा .. जो पहले उसे  लोगों से मिलवाने में भी  शर्मिंदगी महसूस करते थे वो ही आज ....'

 

गिलासों के टकराने की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा , सब उसकी उस किताब के नाम से जाम टकरा रहे थे जिसका शायद पहला पन्ना भी किसी ने नहीं पलटा था और जो गिलासों के साथ एक कोने में पड़ी थी.

 

सामने शेल्फ में उसके पिता की ढेरों चमकती हुई ट्रोफ़ियां सजी थीं , उसे लगा वो भी एक ट्रॉफी  है जिसे कर्नल साहब अब शान से सब को दिखा सकते हैं,  .......

 

.मौलिक व् अप्रकाशित

   

 

  . .

    

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 12, 2015 at 5:52pm
आपने कथा पर आकर मेरा उत्साहवर्धन किया ,मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ आ० जवाहरलाल जी
Comment by pratibha pande on August 12, 2015 at 5:49pm
आ०वीरेन्द्र वीर जी रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका तहे दिल से आभार
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 11, 2015 at 11:15pm

आदरणीय मिथिलेश जी के साथ पूर्ण सहमति साथ ही लघुकथा के माध्यम से आपने जो सन्देश देना चाहा है, वह भी यथेष्ठ है! सादर अभिनन्दन! 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2015 at 11:00pm
आदः मिथिलेश जी के कथा की समीक्षा करने के बाद कुछ कहना शेष नही रह जाता प्रतिभा जी।
इस सुन्दर और अनुपम कृति के लिये सादर बधाई।
Comment by pratibha pande on August 11, 2015 at 10:32pm
आप कथा पर आये और उसकी सराहना की ,आपका हृदय से आभार आ० तेज वीर जी
Comment by pratibha pande on August 11, 2015 at 10:28pm
रचना का हर कोण से अवलोकन कर जिस प्रकार आप गहन टिपण्णी करते हैं वो सदा ही उत्साह वर्धक रहता है ,आपको हार्दिक आभार प्रेषित करती हूँ आ० मिथिलेश जी
Comment by TEJ VEER SINGH on August 11, 2015 at 5:09pm

आदरणीय प्रतिभा जी,हार्दिक बधाई,आपने एक लेखक की उपयोगिता को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है वरना तो लोग आजकल  तरक्की पसंद लोगों की श्रेणी में लेखक को गिनते ही नहीं!पुनः बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 11, 2015 at 3:28pm

आदरणीया प्रतिभा जी, इस लघुकथा को कल से कई बार पढ़ चुका हूँ. जिस गहनता से आपने कथ्य के मर्म को शाब्दिक किया है वह मुग्ध करने वाला है. आपने जिस सूक्ष्म दृष्टि से तथ्य को पकड़कर कथानक बुना है, देखकर चकित हूँ. लघुकथा धीरे धीरे आगे बढती है और अपने चरमोत्कर्ष पर वही झटका देती है जी किसी भी लघुकथा से अपेक्षा की जाती है. देर तक आपकी सधी हुई कलम पर मुग्ध होता रहा हूँ. लघुकथा जिस सांद्रता से सन्देश संप्रेषित करती है वो एक संवेदनशील पाठक के मन को आंदोलित करने के लिए पर्याप्त है. कथानक को आपने संतुलित वाक्य-विन्यास से रोचक भी बना दिया. मेरे विचार से इसे सफल लघुकथा कहा जाता है. आपको इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई और आपका आभार मेरे जैसे लघुकथा के नए अभ्यासी के लिए सीखने को ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए.

सादर 

Comment by pratibha pande on August 10, 2015 at 6:04pm

रचना पर आने के लिए आपका आभार आ० ओमप्रकाश जी

Comment by Omprakash Kshatriya on August 10, 2015 at 5:54pm
आ प्रतिभा जी , वास्तव में कई घरो में ये सजावटी चीजे ही होती है । सुन्दर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या है अपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले…"
13 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
31 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
43 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service