बहर - 212 212 212 212
काफिया - अनी, रदीफ - डाल दी
धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी
चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी
नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी
उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी
वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी
श्याम का नाम तूने लिया क्या सखी
पाँव में प्यार की पैंजनी डाल दी
विधु ने अनुराग से चाँदनी की बुनी
सिर पे तारों जड़ी ओढ़नी डाल दी
मौलिक व अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री
Comment
बहुत-बहुत आभार Dr Ashutosh Mishra जी !
वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी
चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी......आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के इन दो शेरो के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें स्वीकार करें सादर
बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी !
बहुत-बहुत आभार Ravi Shukla जी !
बहुत-बहुत आभार मिथिलेश वामनकर जी ! आपकी इस विस्तृत तारीफ से मेरा प्रयास सार्थक हो गया।
क्या बात है , सुलभ भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
आरणीय सुलभ जी सुंदर ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल कीजिये
वाह वाह आदरणीय सुलभ जी, क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने.... बहुत ही शानदार.... दिल लूट लिया .... एक तो इतनी सुरीली बह्र और उसपर ये कहन.... शेर दर शेर दाद हाज़िर है -
धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी ............ वाह बेहतरीन मतला... घनी/अलगनी .... बहुत सुन्दर प्रयोग... आपका सचेत रचनाकार मुग्ध कर रहा है.
चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी.......... वाह वाह
नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी.............. बढ़िया शेर
उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी.......... सुन्दर
वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी................. वाह वाह क्या नजाकत है.... इस शेर की चाशनी खूब हुई है.
श्याम का नाम तूने लिया क्या सखी
पाँव में प्यार की पैंजनी डाल दी.................. शानदार शेर .... हासिल-ए-ग़ज़ल
विधु ने अनुराग से चाँदनी की बुनी
सिर पे तारों जड़ी ओढ़नी डाल दी..... बढ़िया
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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