बहर - 2212 1212 22 1212
वो भ्रम तुम्हारे प्यार सा बेहद हसीन था
सपनों के आसमान की मानो जमीन था
सारी थकान खींच ली गोदी में लेटकर
बच्चा वो गीत रूह का ताजातरीन था
हर खत में अपनी खैरियत, उसको दुआ लिखी
माँ यह कभी न लिख सकी, कुछ भी सही न था
मन, प्राण, आँख द्वार पर, बेकल बिछे रहे
कुनबा तमाम जुड़ गया, आया वही न था
अँजुरी मेरी बँधी रही और सारा रिस गया
वो प्यार रेत से कहीं ज्यादा महीन था
सूरज बगैर हर दिशा को रौदता रहा
जो शख्स धुंध बन गया, बेहद जहीन था
मैं फलसफों के व्यूह में, बस फँस के रह गया
वो सिलसिला शुरू हुआ तो अन्तहीन था
मैंने किसी के घाव पे मरहम लगा दिया
तुम क्यों बिखर गए तुम्हें मुझ पर यकीन था
----- सुलभ अग्निहोत्री
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस ग़ज़ल पर हुई चर्चा वाकई बहुत कुछ बताती हुई और बतियाती हुई है. ऐसी चर्चाओं का स्वागत है. ऐसी चर्चाओं से कई विन्दु स्पष्ट हो कर खुले-खुले दिखते हैं.
वस्तुतः, ’ग़ुलू’ का दोष कई अर्थों में गज़लकारों द्वारा किया गया कौतुक बन गया है. इस आधार पर किसी ग़ज़लकार की शाब्दिक सामर्थ्य अधिक दिखती है. मैंने दसियों उदाहरण देखे हैं जहाँ काफ़िया कई रूपों में कमाल के साथ व्यवहृत हुआ है.
//लेकिन अगर ग़ज़ल कहना है तो उसके नियमों का पालन आवश्यक है,ग़ज़ल उर्दू विधा है और इसे उसी पैमाने पर देखा जाएगा,अगर नहीं तो इसे 'हिन्दी ग़ज़ल'का शीर्षक दीजिये तो कोई सवाल नहीं उठेगा //
बहुत पानी निकल गया बहाव में, आदरणीय. ऐसी बातें तो अब उर्दू के उस्ताद भी नहीं कहते. बस ये ज़रूर है कि उर्दू जानने वाले उर्दू के हिसाब से सलाह देते हैं और हिन्दी की लिपि-भाषा जानने वाले तदनुरूप सुझाव देते हैं. लाजिमी भी है.
गज़ल के इतिहास पर बातें करेंगे कभी. रोचक विन्दु मिलेंगे. अमीर खुसरो और मीर का नाम लेले कर हम सभी ने ग़ज़ल की भाषा बदल डाली. उनके देखते-देखते !
वैसे, आदरणीय समर साहब, ग़ज़लों पर आपकी समझ आश्वस्त करती है कि हम बेहद मज़बूत पाये के साथ हैं
सादर
कबीर साहब बात को अन्यथा ले रहे हैं। ओबीओ सीखने-सिखाने का मंच है यह मैं भी मानता हूं, पर यह सीखना-सिखाना दिल और दिमाग की खिड़कियाँ खोलकर ही हो सकता है। पहले से यह तय करके कि आप सीखे हुए हैं और मुझे सीखने की जरूरत है - बात कैसे बन सकती है।
प्रत्येक शास्त्र, प्रत्येक नियम देश-काल-परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय है। लकीर का फकीर बनने से काम नहीं चलता।
छोटी सी बात अगर समझने का प्रयास करें तो कोई समस्या ही नहीं है। वह छोटी सी बात है कि -
लय या बहर उच्चारण का विषय है, ध्वनि का विषय नहीं। आप जब तक्तीय करते हैं कि उसकी वर्तनी क्या है - यह देखते हैं कि वह बोला कैसे जा रहा है। बस यही बात यहाँ भी लागू है। शुरू को अरबी फाारसी में कैसे लिखते हैं और कैसे बोलते हैं मुझे नहीं पता पर प्रत्येक हिन्दुस्तानी (कुछ आलिम-फाजिल अपवादों की बात मैं नहीं कर रहा) जब शुरू का उच्चारण करता है तब उसमें तीन मात्रायें ही होती हैं। कम से कम हिन्दी बोलने वाला तो ऐसे ही बोलता है। मैं भी ऐसे ही बोलता हूं और बोलूंगा। जब मैं हिन्दी में लिख रहा हूं तो मात्रा भी अपने उच्चारण के हिसाब से ही गिनूंगा न कि उर्दू के।
आदरणीय कबीर जी! मैं देवनागरी में लिख रहा हूँ, जाहिर है देवनागरी हिन्दी की लिपि है। मैं हिन्दी में ही लिख रहा हूं। इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि उर्दू मुझे नहीं आती।
मैं उर्दू या अन्य किसी भी भाषा के वही शब्द प्रयोग करता हूं जिन्हें हिन्दी पचा चुकी है। देश की हिन्दी बोलने समझने वाली करोड़ों जनता पचा चुकी है। बहुत बार इस पचाने की प्रक्रिया में ये शब्द मूल शब्द से परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे उर्दू .. या अरबी या फारसी ने सिकन्दर, अरस्तू, हिंद, बिरहमन आदि शब्द पचाकर अपने मूल रूप से कोसों दूर लाकर खड़े कर दिये। जिस दिन मैं फारसी लिपि में लिखूं उस दिन बताइयेगा कि यह शब्द चार हर्फी है - जब देवनागरी में लिखा गया है तो वो जैसा है सामने है।
बातें दिल पर मत लीजिएगा -- मेरी सोच को समझने की कोशिश कीजिएगा। उर्दू न जानने वालों पर उर्दू व्याकरण लादने के प्रयास से कुछ हासिल होने वाला नहीं है - बस खाई बढ़ेगी।
हाँ आपने जो कीमती जानकारी उपलब्ध करायी है उसके लिए शुक्रगुजार हूं, .. आभारी हूँ।
आभार आदरणीय गिरिराज जी !
आप सही हैं , आ. सुलभ भाई , पुनः बधाई गज़ल के लिये ॥
छठे शेर में थोड़ा सा परिवर्तन हुआ है। इसे कृपया अब ऐसे पढ़ें -
सूरज की बेरुखी रही, सजा वक्त को मिली
जो शख्स धुंध बन गया बेहद जहीन था
आभार आदरणीय गिरिराज जी !
मैंने सीधी-सीधी बहर ली है -
22 12 12 12 22 12 12 ......... इसके रुक्नों पर उलझने की मेरी कोई मंशा नहीं है।
आदरणीय तुम्हारे की मात्रायें मैंने 121 ली हैं।
आदरणीय सुलभ भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , क़ाफिया मे भी मेरी समझ मे कोई कमी नही है , बाक़ी जैसा उस्ताद कहें ।
मतले का उला --
वो भ्रम तुम्हारे प्यार सा बेहद हसीन था --- इसही तक्तीअ फिर से कर देखिये , आपने तुम्हारे की मात्रा शायद ग़लत ली है ,
तुम्हारे = 122 सही होगा ।
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