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गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की ग़ज़ल
मैं चला जा रहा राह अपनी बदल
हुस्न को देख दिल जो गया था मचल
आज उसको भी देखा है मैंने अटल
वो घने गेसू गुल से हसीं लव कहाँ
है मुकद्दर खिजाँ तो खिजाँ से बहल
उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा
सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल
शक्ल में गुल की ये मेरे अरमान हैं
नाजनी इस तरह तू न गुल को मसल
चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर
शोरगुल भी नहीं न किसी का खलल
घुट रहा दम मेरा शहर में आजकल
गाँव के हाल देखे तो आँखें सजल
मूल्य सब बेंचकर जो तिजोरी भरे
उसको ही मानती आज दुनिया सफल
हुस्न को देख आँखें ये भौचक हुयी
मन मचलने लगा तो गया दिल फिसल
अब न तहजीब है न अदब कायदा
है नयी सभ्यता है नयी अब फसल
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय पवन जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..मैंने जब से इस मंच से जुड़ कर लिखना शुरू किया ..तबसे लगातार आप का स्नेह और मार्गदर्शन मुझे हमेशा मिला ..आपकी प्रतिक्रिया का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय रवि सर ..आप जैसे विद्वतजनो के मार्गदर्शन , स्नेह और हौसला अफजाई से लेखन को उर्जा मिलती है ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय रवि सर ..आप जैसे विद्वतजनो के मार्गदर्शन , स्नेह और हौसला अफजाई से लेखन को उर्जा मिलती है ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय मिथिलेश जी . .. आपकी प्रतिक्रिया से मुझे बहुत हौसला मिलता है .ग़ज़ल के इस सफ़र पर मैं चलता हुए अपनी ग़ज़लों को निखार सकों इस हसरत के साथ सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिर्किया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर
मूल्य सब बेंचकर जो तिजोरी भरे
उसको ही मानती आज दुनिया सफल
आदरणीय, हकीकत को गजल मे इतने अच्छे तरह से पिरोने के लिए हार्दिक बधाई।
आदरनीय आशुतोष भाई , क्या खूब ग़ज़ल कही है , हर शे र काबिले दाद है , मुबारकबाद कुबूल करें ।
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया दाद कुबूल फरमाएं.
उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा
सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल... उम्मीद की इंतिहा क्या बात है
चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर
शोरगुल भी नहीं न किसी का खलल... इस हकीकत को केवल एक शायर ही बयान कर सकता है । अच्छा कथ्य है
अब न तहजीब है न अदब कायदा
है नयी सभ्यता है नयी अब फसल ..... पाये का शेर है जनाब
दाद कुबूल करें ।
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, गुनगुनाते हुए आनंद आ गया. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.
अब न तहजीब है न अदब कायदा
है नयी सभ्यता है नयी अब फसल
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