For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल - सुलभ अग्निहोत्री

सच कहने की हलफ़ उठाई
अपनों से दुश्मनी निभाई

जिसके हाथ तुला दी उसने
पल्ले में पासंग लटकाई

दीपक तले अंधेरा देखा
देखी रिश्तों की गहराई

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई

शेर कटघरे के अन्दर हो
कुछ ऐसे ही है सच्चाई

अपने ही दुखड़ों में खोये
कैसे पढ़ते पीर पराई

फूट पड़ा आवेग पिघलकर
जब सावन की पाती आई

जिसने कपड़े आप उतारे
उसको कैसी जगत हँसाई

मुथरी है तलवार भले ही
लेकिन दिल है हातिमताई

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2015 at 3:57pm

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई

 

फूट पड़ा आवेग पिघलकर
जब सावन की पाती आई

उपर्युक्त इन दो शेरों ने तो बस मोह लिया, आदरणीय सुलभभाई.
इसग़ज़ल केलिए दिल से दाद कह रहा हूँ

अलबत्ता यह शेर, विशेष कर सानी, एक नज़र और चाहता है, भाईजी.
जिसके हाथ तुला दी उसने
पल्ले में पासंग लटकाई

पासंग वैसे भी पुल्लिंग शब्द है जो अकसर चढ़ाया या लटकाया जाता है.

Comment by Sulabh Agnihotri on August 10, 2015 at 10:16am

बहुत-बहुत आभार, Rahul Dangi जी !

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 9, 2015 at 1:44pm
बहुत ही सुन्दर गजल हुई है आदरणीय बधाइयाँ ।

मुथरी है तलवार भले ही
लेकिन दिल है हातिमताई। इस शे'र के लिए विशेष दाद कबूल करें।
Comment by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 12:34pm

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  JAWAHAR LAL SINGH जी !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 11:42am

बहुआयामी गजल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी! शेर जो मुझे पसंद आये 

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई....ग़जब!

Comment by Sulabh Agnihotri on August 8, 2015 at 9:53am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  Dr. Ashutosh Mishra जी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 1:01pm

आदरणीय सुलभ जी ..इस ग़ज़ल के कई शेर पसंद आये ..आज पहली बार आपको पढने का मौका मिला ..रचना हेतु ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:24am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  Manan Kumar singh जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:23am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:23am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय   Sushil Sarna जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service