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लघुकथा – इच्छा  

“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल बुलबुल के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.

“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही बुलबुल को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ बुलबुल बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’

यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. फिर गुमनाम राह पर जाते-जाते ठाकुर और ठकुराइन को यह खबर भेज दी कि आज आप दोनों रात को दस बजे उस के अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.”  और बुलबुल उड़ गई.

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मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 9:39pm

kanta roy  जी , लघुकथा का मूल उद्देश्य यह बताना है कि पत्नी के अलावा ऐसी कौन हो सकती है जो दुसरे व्यक्ति के पास जाए और  उस के अतिरिक्त दुसरे के लिए अनछुई हो. इसी उद्देश्य के लिए यह कथा लिखी है .

Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 9:33pm
आदरणीय ओमप्रकाश जी , ये कथा लघुकथा सार्थक बनते - बनते कहीं छूट गई है । सबसे पहले यही बात की आप क्या कहना चाहते थे इस कथा के माध्यम से ...संदेश क्या था इसमें निहित जो लघुकथा लेखन का अहम उद्देश्य होता है ? सादर
Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 9:30pm

आदरणीय Ravi Prabhakar जी , मैंने लघुकथा में मामूली बदलाव किया है . अव बताइएगा कि बात बनी या नहीं,
लघुकथा- इच्छा
“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल-मीना के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.
“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही मीना को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ मीना बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’
यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. जाते-जाते यह खबर भेज दी कि आज आप रात को दस बजे मेरे अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.”
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(मौलिक और अप्रकाशित )

Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 9:21pm

Ravi Prabhakar  जी , आप का कहना सही है. मगर मैं इस अंतर कोा समझ नहीं पा रहा हूँ. कृपया स्पष्ट कीजिए.

Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 9:01pm

शुक्रिया आ pratibha pande जी , आप को मेरी लघुकथा पसंद आई. पत्नी के साथ रखेल शब्द बेमेल है और रहेगा. आप के  इस अनुमोदन के लिए  शुक्रिया .

Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 8:59pm

Archana Tripathi  जी , आप सही है. पत्नी भाव स्पष्ट करने के लिए कोष्टक में था. कट/ पेस्ट / कॉपी में शायद छुट गया. पत्नी और रखैल में पर्याप्त अंतर है. आप का  शुक्रिया आ अर्चना जी , इस ओर ध्यान दिलाने के लिए. आभार आप का आ Archana Tripathi   जी एवं आ  Sushil Sarna जी .

Comment by Ravi Prabhakar on August 5, 2015 at 8:57pm

आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, साहित्‍यक व्‍यंग्‍य ऐसा रामबाण है जो लक्ष्‍य को भेदकर तिलमिला देने की क्षमता रखता है। अन्‍तस के खंडन का एक प्रतिरोधात्‍मक चीत्‍कार ही व्‍यंग्‍य है जो सामाजिक तथ्‍यों का नैतिक प्रहरी होता है। व्‍यंग्‍य और चुटकुले में बाल भर का अंतर होता है। आपकी लघुकथा इस बाल भर के अंतर के इस तरफ खड़ी मालूम होती है । इस कथा का शीर्षक भी कथा के कथ्‍य को उद्घाटित नहीं कर पाया। सादर

Comment by pratibha pande on August 5, 2015 at 8:22pm
औरत ने औरत का दर्द समझा वाह आ० ओमप्रकाश जी , हाँ रखेल के साथ पत्नी शब्द बेमेल है
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 7:51pm

आदरणीय जी लघुकथा और उसकी पंच लाईन सुंदर हुई है लेकिन हाँ रखैल पत्नी    .... शब्द  कुछ जमा नहीं  … बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Archana Tripathi on August 5, 2015 at 5:14pm
क्षमा करें आदरणीय मित्र ओमप्रकाश क्षत्रिय जी ,आपकी रचना बेशक अति उत्तम हैं पञ्च भी जानदार हैं लेकिन यह बताइये रख़ैल को पत्नी का दर्जा कब से मिल गया ?क्या यह पत्नी का अपमान नहीं ?अन्यथा ना लीजियेगा और अगर मैं गलत हूँ तो क्षमा कीजियेगा ।

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