For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब (इस्लाही गजल )

2212 2212 2212 22

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |

मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |

मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 

बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |

ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |


हर्ष महाजन  

"मौलिक व् अप्रकाशित"


नवाज = ईश्वर/भगवान् 
मंदिर = इंसानी देह  

Views: 1567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by saalim sheikh on July 29, 2015 at 7:47pm

बढ़िया प्रयास आदरणीय  , बधाई , शिल्प के बारे में काफ़ी बातें सामने आ ही चुकीं आपके साथ साथ मुझे भी सीखने का मौका मिला , मैं कथ्य के बारे में बस इतना कहना चाहूँगा कि कई मिसरे  थोड़े अस्पष्ट लगे मुझे 

' कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब '

'मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब'

Comment by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 5:31pm

आदरणीय Rahul Dangi जी बहुत बहुत धन्यवाद....सर आप सभी गुनीजनों का मार्गदर्शन की ज़रुरत है इसी से सब सुलभ होता दिखाई देता है ....अहसासों को डालने की कोशिश भर है | एक लम्बा सफ़र तय करना है | साभार |

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 28, 2015 at 5:24pm
आदरणीय हर्ष जी अच्छा प्रयास है । गुनीजनों की बात पर गौर करें। सादर।
Comment by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 4:40pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपने निहायत ही खूबसूरत तरीके से इस रचना को आकर्षित बनाया है | सर आप की सहायता से रफ्ता रफ्ता इस काफिये पर तरह  पूरी जीत पाने की कोशिश रहेगी | इसको फिर से कहने की कोशिश जारी रहेगी |आपके इन नए काफियों की इस्लाह के लिए मैं तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ....आईंदा भी आपको तकलीफ देता रहूँगा सर | साभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 12:28pm

आदरणीय हर्ष जी इस प्रयास पर बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की बात से सहमत हूँ मतले में बह्र भटक गई और अशआर में काफिया ही बदल गया. ग़ज़ल की कक्षा का लाभ लेकर पुनः प्रयास अपेक्षित है. सादर 

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |

मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |

मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 

बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया नेवाज, तेरे मंदिरों में अब |........ एक ही मिसरे में आज और अब नहीं आ सकता 

ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब | .............एक ही मिसरे में  अब दो बार नहीं आ सकता 

यह भी अवश्य है कि उर्दू के मुताबिक ज़ाल(ز)ज़्वाद(ض) ज़ो (ظ)जीम( ج) हमकाफिया नहीं हैं लेकिन ये इस्लाह देवनागरी में लिखी गई ग़ज़ल पर दे रहा हूँ इसलिए इसके फेर में नहीं पड़ता. न मुझे उर्दू लिपि का ज्ञान है. इसलिए इसे देवनागरी में प्रस्तुत  ग़ज़ल पर देवनागरी में किया गया निवेदन मान जावे.

सादर 

Comment by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 11:58am

आदरणीय Samar kabeer जी धन्यवाद आपने इस कृति में जो  काफिया का दोष बताया है तीसरे चौथे और आखिरी शेर में प्रतीत हुआ...काफिये की क्लास पढ़ रहा हूँ सही कहा... कोशिश जारी रहेगी सर | शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on July 28, 2015 at 11:33am
जनाब हर्ष महाजन जी,आदाब,ग़ज़ल का प्रयास तो अच्छा है,रदीफ़ भी ठीक है लेकिन क़ाफ़िये भटक रहे हैं,लय भी टूट रही है,ओबीओ पर ग़ज़ल की कक्षा की सुविधा उपलब्ध है,उसका लाभ उठाऐं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
23 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service