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फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं

जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.

 

जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो

 रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं

 

लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस

अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं.

 

छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो

गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते हैं.

 

कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी

 हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं

 

बनाते मूर्ख जनता को उगे मशरूम से बाबा

सदा अपनी दुआओं के असर की बात करते हैं

 

बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी

 सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं

 

कहाँ किसने वफ़ा की थी कहाँ किसने जफ़ा की थी

चलो छोडो नये अपने सफ़र की बात करते हैं

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2015 at 9:21am

महर्षि त्रिपाठी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत -बहुत शुक्रिया  आपका| 

Comment by maharshi tripathi on July 23, 2015 at 10:44pm

जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो

 रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं,,,,,,,बढ़िया आ. rajesh kumari  जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 9:06pm

आ० सुशील सरना जी ,बढ़िया शेर कोट किया है बधाई .आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 9:05pm

राहुल दांगी जी ,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 9:04pm

आ० रेखा मोहन जी ,इस होंसलाफ्जाई का दिल से शुक्रिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 9:03pm

शिज्जू भैया,ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपको कुछ शेर पसंद आये ,बाकि सहर वाले  शेर  पर जो मैं स्पष्टीकरण देना चाहती थी वो मिथिलेश जी ने दे दिया अब उस नजरिये से पढेंगे तो स्पष्ट होगा |

दुसरे शेर में थोड़ी सी तब्दीली कर रही हूँ शायद पहले से बेहतर लगे --

रहें तन से इधर मन से उधर की बात करते हैं

आपका तहे दिल से आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 8:57pm

विनय कुमार जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभार| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 8:56pm

मिथलेश भैया ,शेर दर शेर समीक्षा ने मेरा लेखन सार्थक कर दिया तथा आश्वस्त किया कि अशआर आपनी बात रखने में सफल हैं तहे दिल से बधाई | 

Comment by Sushil Sarna on July 23, 2015 at 5:46pm

बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी
सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं

वाह … आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुंदर भावों के अशआर बन पड़े हैं .... इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इसी क्रम में एक शेर अर्ज़ है :

मिला न सके जो कभी नज़रों से नज़रें
वही बशर आज नज़र से बात करते हैं

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 23, 2015 at 5:20pm
बहुत सुन्दर गजल हुई है आदरणीया

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