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अदृश्य भय - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

“आज बहुत लेट हो गई ? ’मम्मा ऑफिस से कब आएगी’, पूछ-पूछ कर परी ने कबसे परेशान कर रखा है..”
सासू माँ की बगल में सुनंदा की तीन साल की बेटी चुपचाप अपनी गुड़िया के साथ खेल में मग्न थी.
“मधुकर भैया है न, इनके दोस्त, उनके यहाँ बेटी हुई है, बस हॉस्पिटल गई थी. इनका फोन आया था कि वो नहीं जा पाएंगे इसलिए मुझे जाना पड़ा.” - सुनंदा की आवाज़ सुनकर परी दौड़ती हुई अपनी मम्मा से लिपट गई.
“अरे उसकी तो पहले ही एक लड़की है न ?... काश इस बार लड़का हो जाता.. अच्छा रहता.”  कहती हुई सासू माँ ने सुनंदा से लिपटी हुई परी को कुछ ऐसी नज़रों से देखा कि सुनंदा भीतर तक काँप गई.

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 22, 2015 at 12:32pm

आदरणीय गिरिराज सर, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आपने बिलकुल सही कहा है जब तक खुद महिलाओं की सोच न बदल जाये सुधार की कोई गुंजाइश भी नही है । सादर 

Comment by kanta roy on July 22, 2015 at 12:24pm
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हुई है लघुकथा का यहाँ । विषय का निर्वाह बडी ही सावधानी से सुनियोजित तरीके से हुई है । पहले दर्जे के ये उच्च शिक्षित लघुकथा छात्र का हम सबके लिए भविष्य में अनुमोदन करना तो बनता ही है । बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी ।
Comment by pratibha pande on July 22, 2015 at 12:07pm

आ० मिथिलेश जी , कम से कम ऑफिस जाने वाली मम्माओं को इन डरों से अब नहीं डरना चाहिए I सशक्त रचना के लिए बधाईI 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 10:25am
आदरणीय रोंए खडे कर आपनी इस रचना नें। बहुत सटीक
Comment by Seema Singh on July 22, 2015 at 8:24am
बहुत अच्छी कथा.. मिथिलेश जी बधाई.. विषय तब तक चर्चा के योग्य बना ही रहेगा जब समाज पर उसकी काली छाया बाकी है.. और हमारा दुर्भाग्य है कि कन्या भ्रूण-हत्या और लड़कियों के प्रति सोच के बदलाव की गति बहुत धीमी हैं.. जब तक बदलाव ना आ जाए विषय पुराना कैसे हो सकता है..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2015 at 7:12am

आदरणीय मिथिलेश भाई , एक सर्व कालिक सामाजिक बुराई को आपने खूबसूरती से बयान किया है , जब तक खुद महिलाओं की सोच न बदल जाये सुधार की कोई गुंजाइश भी नही है । कथा के शिल्प के बारे मे मुझे कोई ज्ञान नही है , पर कथा अच्छी लगी । आपको बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2015 at 9:55pm

’सीखने-सिखाने’ के अंतर्गत हो रहे इस पारस्परिक अभ्यास को आपका अनुमोदन मिला, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मिथिलेशभाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 9:01pm

आदरणीया शशि जी,  लघुकथा के प्रयास पर सराहना, सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया  के लिए हार्दिक आभारी हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 8:59pm

आदरणीय सौरभ सर, मेरे लघुकथा के प्रयास पर सराहना, सकारात्मक प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभारी हूँ. अभ्यास के क्रम में लघुकथा के शिल्प पर विशेष प्रयास कर रहा हूँ.  आपके मार्गदर्शन से कुछ बातें स्पष्ट हुई है जिसमें वाक्य विन्यास सबसे महत्वपूर्ण है. उद्धरण चिन्ह, अल्पविराम, प्रश्नवाचक आदि चिन्हों के उचित प्रयोग करने से कथ्य के सम्प्रेषण की स्थिति भी स्पष्ट हो गई.  इस मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. नमन 

Comment by shashi bansal goyal on July 21, 2015 at 8:54pm
आद0 मिथिलेश जी सुन्दर रचना हुई है । जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी ये विषय बार बार उठते रहेंगे जो आवश्यक भी हैं ।बधाई इस उम्दा प्रस्तुति पर । सादर ।

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