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ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

 २२    २२  २२  २

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यार कभी तू ऐसा कर

रस्ता मेरा देखा कर

याद किया बरसों तुझको

इक पल तू भी सोचा कर

अपने दाम लगा फिर तू

हाट लगा कर बेचा कर

सूरज चाँद पकड़ने में

जुगनू को मत छोड़ा कर

फोन खरीदा महँगा तो

इक दो कॉल मिलाया कर

बन झूठा बीमार कभी

रस्ता सबका ताका कर

तेरा भी है नाम बहुत

खुशफहमी ही पाला कर

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

बहुत लम्बी छुट्टी  के बाद पुनः प्रवेश कि अनुमति दें

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on July 17, 2015 at 11:14am

धन्यवाद दोस्तो ,,,,,,,,,,,,,


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 11:41pm

आदरणीय गुमनाम जी छोटी बह्र की शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 3:30pm

सूरज  चाँद पकड़ने में जुगनू  को मत छोड़ा कर ,  वाह  बधाई  इस रचना के लिए  आपको   , सादर 

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