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वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में ( © परी ऍम. 'श्लोक' )

१ २ २ २ १ २ १ २ २ २
पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में

चले जायेंगे जां तेरी लेकर
बने बुत से जियोगे लोगों में

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
बेहिस चलते रहोगे लोगों में

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में

मिलेगी फिर नहीं कभी जानाँ
वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में

© परी ऍम. 'श्लोक'

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:08pm

वाह..परी बहुत अच्छे .....बहुत बहुत बधाई ..इस प्रयास के लिए

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2015 at 8:41pm

मात्रा  प्रायः  वहां गिरती है जहाँ हम पढ़ने में भी उसे शार्ट का सकें क्योंकि गजल की मात्राये पढ़ने के हिसाब से गिराई जाती है . नियम जानना भी  आवश्यक है .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 2, 2015 at 7:01pm
आ परी जी मात्रा गिराने के नियम समझने के लिए आदरणीय वीनस जी की पोस्ट पढ़ जाइए। लिंक
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...
Comment by मनोज अहसास on July 2, 2015 at 5:57pm
बहुत दर्द भरी पुकार और
विदाई के
अहसास में डूबी हुई मार्मिक ग़ज़ल
वाह वाह
बहुत खूब
सादर
Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 5:52pm
maharshi tripathi जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका :)
Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 5:42pm
मिथिलेश वामनकर जी आपकी टिप्पणी से ग़ज़ल में मौजूद खामियों का मालूम चला आपके मार्गदर्शन हेतु दिल से आभार
Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 5:39pm
मिथिलेश वामनकर ji ग़ज़ल में मात्रा को घटाया बढ़ाया जा सकता है इसलिए बेहिस व न का प्रयोग किया। किन्तु यदि सही नहीं है तो बदलाव करेंगे शेर में
Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 5:33pm

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में

मिलेगी फिर नहीं कभी जानाँ
वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में,,,,,,,,,,,विशेष दाद ,,आपकी गजल में निखर आ रहा है ,,बधाई आपको |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 2, 2015 at 5:29pm

आ०  Pari M Shlok जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

शेर दर शेर बात करे तो--->

पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में..... वैसे बड़ी बात नहीं है मगर ग़ज़ल में ना का प्रयोग परंपरा में नहीं है इसका वज्न 1 ही होता है 

चले जायेंगे जां तेरी लेकर
बने बुत से जियोगे लोगों में.....  बढ़ियाशेर 

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
बेहिस चलते रहोगे लोगों में.... बेहिस का वज्न 22 होगा शायद 

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में..... रास्ता को रस्ता किया जा सकता है बढ़िया शेर 

मिलेगी फिर नहीं कभी जानाँ
वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में..... वाह वाह 

हार्दिक बधाई 

सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:59pm

वाह! आ० हार्दिक बधाई! बहुत सुन्दर गज़ल हुयी है! गज़ल पर आपका प्रयास रंग ला रहा है!बधाई

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में     यह शेर बहुत पसंद आया! बेहतरीन

बस एक चूक हो गयी है...रास्ता का वजन २१२ होगा!

रास्ता को रस्ता कर लेना क्या उचित रहेगा? गुनीजनो से मार्गदर्शन निवेदित है!

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