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मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )

मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )


नई -नवेली दुल्हन सी वो आज भी लगती थी । आँखों में उसके जैसे शहद भरा हो । पिता की गरीबी नें उसे उम्रदराज़ की पत्नी होने का अभिशाप दिया था ।


उसका रूप उसके ऊपर लगी समस्त बंदिशों का कारण बना । उम्रदराज और शक्की पति की पत्नी अपने जीवन में कई समझौते करने के कारण कुंठित मन जीती है ।


आज चूड़ी वाले ने फिर से आवाज लगाई तो उसका दिल धक्क से धडक गया । वो हमेशा की ही तरह पर्दे की ओट से धीरे से उसे पुकार बैठी , " ओ , चूड़ी वाले ! "


उसके मक्खन से हाथ को छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का वो बडी़ शिद्दत से इंतजार किया करती थी ।


चुड़ीवाले ने हमेशा की तरह वहीं बाहर बैठ कर अपना साजों सामान पसार लिया । उसे मालूम था कि इस मक्खन जैसी हाथ वाली को सिर्फ हरे रंग की चूड़ियाँ ही अच्छी लगती है ।
पसारे हुए सभी चूडियों में धानी रंग की चूडियों पर पर्दे की ओट से मक्खन जैसी हाथ वाली की अंगुलियों ने इशारा किया ।

कुछ ही देर में मक्खन जैसे हाथ, चुड़ी वाले के खुरदरे से हाथ में देर तक बेचैनी और बेख्याली के पल को जीते रहे ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on June 22, 2015 at 1:27pm
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2015 at 1:06pm
प्रसंशनीय। और क्या लिखूं. बधाई , आदरणी सुश्री कान्ता रॉय जी , आपको इस सारगर्भित , बोलती हुयी प्रस्तुति के लिए। सादर।
Comment by kanta roy on June 22, 2015 at 12:16pm
बहुत बहुत आभार आपको आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी मेरा हौसला वर्धन के लिए ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2015 at 11:53am

बेहतरीन ------आ० कांता जी , राहत तलाशती कुंठित नारी के वैकल्पिक निदान का बहुत ही मनोवैज्ञानिक और सुन्दर  वर्णन आपने किया है , इस सूक्ष्मता को नारी लेखन ही  उभार सकता था . कथा के लिए मैं आपकी भूरि -भूरि प्रशंसा करता हूँ . सादर .

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