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गुरू वंदन अभिनंदन

तुम महान
अद्भुत स्वप्नद्रष्टा
स्वप्न कैसा
साकार किया है
व्यास प्रकाश
पुंज से अपने
जीवन का
महाकाव्य दिया है
तमस तम को
काट ज्ञान से
शुभ्र अमर
संदेश दिया है
तुम दूर दृष्टा हो
मै अज्ञानी
जन्म साकार
यह मूर्त दिया है
मस्तक पर तुम
चंदन हो स्वामी
यह हमने
स्वीकार किया है
तुम मेरे गुरू
गोविंद ब्रह्मज्ञानी
तुममें ईश्वर का
साक्षात्कार किया है



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 12:35am

ऐसी रचनाएँ गेय हों और मात्रिक कसौटियों सधी पर हों, तभी सहज लगती हैं, आदरणीया कान्ताजी.
प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 27, 2015 at 12:20pm

बहुत सुंदर  भाव रचित रचना से आपके संसारित भावों का आभास होता है | बहुत बहुत बधाई आदरणीया कान्ता रॉय जी 

Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 7:49am
रचना पसंद करने के लिए आभार आपको आदरणीय आदित्य जी
Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 7:47am
आभार आप को आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी रचना पसंदगी के लिए
Comment by shree suneel on June 25, 2015 at 6:14pm
अच्छी सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कांता राॅय जी. बधाई आपको.
Comment by Aditya Kumar on June 24, 2015 at 5:16pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया  kanta roy जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:02pm

सुन्दर रचना  है, आदरणीया कांता जी ,  हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर ! सादर   

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