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मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )

मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )


नई -नवेली दुल्हन सी वो आज भी लगती थी । आँखों में उसके जैसे शहद भरा हो । पिता की गरीबी नें उसे उम्रदराज़ की पत्नी होने का अभिशाप दिया था ।


उसका रूप उसके ऊपर लगी समस्त बंदिशों का कारण बना । उम्रदराज और शक्की पति की पत्नी अपने जीवन में कई समझौते करने के कारण कुंठित मन जीती है ।


आज चूड़ी वाले ने फिर से आवाज लगाई तो उसका दिल धक्क से धडक गया । वो हमेशा की ही तरह पर्दे की ओट से धीरे से उसे पुकार बैठी , " ओ , चूड़ी वाले ! "


उसके मक्खन से हाथ को छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का वो बडी़ शिद्दत से इंतजार किया करती थी ।


चुड़ीवाले ने हमेशा की तरह वहीं बाहर बैठ कर अपना साजों सामान पसार लिया । उसे मालूम था कि इस मक्खन जैसी हाथ वाली को सिर्फ हरे रंग की चूड़ियाँ ही अच्छी लगती है ।
पसारे हुए सभी चूडियों में धानी रंग की चूडियों पर पर्दे की ओट से मक्खन जैसी हाथ वाली की अंगुलियों ने इशारा किया ।

कुछ ही देर में मक्खन जैसे हाथ, चुड़ी वाले के खुरदरे से हाथ में देर तक बेचैनी और बेख्याली के पल को जीते रहे ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on July 8, 2015 at 12:28am
बहुत बहुत आभार आपको आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , इस कथा पर मै फिर से प्रयास करूंगी । सादर नमन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 12:17am

आपने इसमें थोड़ा सुधार किया. लेकिन मेरा सादर आग्रह है कि इस प्रस्तुति को revamp किया जाय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 11:42pm

आदरणीया कान्ताजी, चूँकि, कथा के विन्यास में सामान्य कथ्य न हो कर अत्यम्त क्लिष्ट परिस्थितियों का इंगित है, इसके प्रस्तुतीकरण के समय तनिक विशेष संयत तथा सचेत रहने की आवश्यकता थी. अन्यथा रचना-वाचन के बाद का प्रभाव न केवल तिरोहित हो जाता है बल्कि झुंझलाहट भी होती है. जिसकी चर्चा मैं कर चुका हूँ.
मेरा तो यही मानना है. .. सादर

Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 11:28pm
उसके मक्खन से हाथों की (में ) छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का ......आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी जरा सा टंकण त्रुटि के कारण यह स्थिति बन गई है । रचना पर आपकी उपस्थिति मेरा मनोबल बढा जाती है । मै इसे एडिट कर दूंगी । " मक्खन जैसी हाथ वाली " का मै सभी त्रुटि आपके मार्गदर्शन के तहत सुधार कर झुंझुलाहट वाली परिस्थितियों से कथा को उबारने की अति शीघ्र ही कोशिश करती हूँ । नमन आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 11:13pm

आदरणीया कान्ताजी, बड़ा ही मनोवैज्ञानिक तथ्य साझा हुआ है. पक्ष को सही रखने का प्रयास भी हुआ है. हार्दिक बधाई देता हूँ. प्रस्तुति साहस के साथ साझा हुई है.

लेकिन कई वाक्य ’मक्खन वाले हाथ’ के कारण झुंझलाहट का कारण बन जाते हैं.
फिर इसे देखें -
उसके मक्खन से हाथों की छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का ..
क्या हुआ इसका मतलब ?

शुभेच्छाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:49am

बढ़िया लघुकथा 

हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 6:07pm

 बहुत  बढ़िया तराशी  हुई , एवम् स्त्री  के  एक मनोवेज्ञानिक पक्ष  का  सुन्दर चित्रण  करती इस रचना पर  बधाई  आ. कांता जी  ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2015 at 4:50pm

आदरणीया कांता जी , विषय और कथा दोनो बहुत सुन्दर लगे, आपको हार्दिक बधाई , लघु कथा के लिये ।

Comment by kanta roy on June 24, 2015 at 10:46am
आदरणीय विजय निकोरे जी हौसला वर्धन टिप्पणी के लिए तहे दिल से आपका आभार
Comment by kanta roy on June 24, 2015 at 10:45am
हृदय तल से आपको आभार आदरणीय वीर मेहता जी आपने कथा का मर्म बखूबी व्यक्त किया है अपने टिप्पणी में

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