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2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी  हमने  

अन्यथा जीवन में  कुछ भी कर नहीं पाते

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 11:27pm
"मेरे दीदए तर भी उनको तो नहीं भाते"
Comment by somesh kumar on June 18, 2015 at 10:08pm

आपकी काव्य रचना पहले ही आनन्द रस और भाव से भर देतीं थी |गजलों में भी कुछ ऐसा ही सामर्थ्य जान पड़ता है |

अर्थपूर्ण और कामयाब गज़ल पर बधाई

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 7:19pm
हाहाहा जी बिल्कुल| सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:19pm

आ० अनुज भंडारी जी

मेरी गलतिया दुरुस्त भी कर दिया करें , सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:18pm

राहुल जी

आप भी सीख रहे है !

खूब गुजरेगी जब मिलकर बैठेंगे दीवाने दो . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:16pm

आ० समीर कबीर साहिब

आपने चश्मेतर के बारे में बताकर मेरा ज्ञान बढाया . कृपया  इस मिसरे को दुरुस्त भी करने की कृपा करें . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:14pm

आ० वीनस जी

आपके मशवरे से याद आया कि  गजल में पढ़ने के लिहाज से  मात्राएँ तय होती हैं , सादर .

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 6:54pm
आदरणीय गोपाल जी मैं भी सीख ही रहा हुँ मैंनें यह सवाल भी अपनी सीख के लिए ही किया था
बेबसी महबूब को किस भाँति समझाऊँ।
क्या तभी समझेंगे जब तक मर नहीं जाते।।
मैनें कुछ इस तरह कोशिश की है सादर
Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 6:21pm
चश्म-ए-तर,स्त्रिलिंग है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 5:44pm

राहुल जी

 माफ़ करिएगा गजल  मैं अभी सीख रहा हूँ --------- आज भी मेरे उनको चश्मेतर नहीं भाते ----- क्या यह सही रहेगा , यदि सही न हो तो इस्लाह कर दें  सादर .

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