For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिज्ञासा

प्रश्न?
केवल प्रश्नों के घेरे में
छटपटाता जीवन,
चीर दिया आकाश
फिर भी चंचल था यह मन
वह था मेरा प्यारा बचपन ;

हाईफन –
यौवन का हाईफन लाया
तटस्थ जीवन
क्या किसीसे हो पाया
कोई सेतु बंधन !
व्यर्थ,
व्यर्थ ही कुछ क्रंदन ;

अल्पविराम ,
प्रौढ़त्व के अल्पविराम पर
टिका हुआ है जीवन
इच्छाओं के जंगल से निकलकर
जान पाया मन
जीवन है एक उपवन ;

अंत में,
पूर्णविराम के साथ
हे मेरे ईश्वर,
प्रशांति के वलय में क्या
दोगे मुझको उत्तर
मेरे उस मूल प्रश्न का !!!
बशर्ते तुम्हें मालूम हो.....
(मौलिक तथा अप्रकाशित रचना)

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 10:43pm

आदरणीय शरदिन्दुजी, आपकी प्रस्तुति पर विलम्ब से आ रहा हूँ. किन्तु, पढ़ते ही बिम्बों के आयाम से मंत्रमुग्ध सा हो गया हूँ.

ईश्वर की अवधारणा को बिना चोट पहुँचाये उसे मानवीय धरातल पर ले आना रोचक लगा. जीवन की अवस्थाओं को समझ के अनुसार ही बाँधना उचित है.
हार्दिक बधाई आदरणीय.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 3:16am

परम आदरणीय शरदिंदु मुकर्जी सर इस विशिष्ट कविता की प्रस्तुति हेतु आभार 

चिन्हों के माध्यम से जीवन की विभिन्न स्थितियों को परत दर परत खोलती इस उच्च भावभूमि की कविता हेतु नमन 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 16, 2015 at 12:29pm

आदरणीय दादा श्री

आपकी व्याख्या ने तो मानो आँखें ही खोल दी . भावनाओं की उच्च भूमि पर अवस्थित इस कविता को प्रणाम . सादर .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 16, 2015 at 7:40am

अज्ञानतावश मैंने 'आत्मगीत' कहा!चूँकि कवि अपने ही विषय में बार बार प्रश्न कर रहा है!

आ० आपके द्वारा आ० गोपाल सर को दिए गए प्रतिउत्तर से बहुत कुछ स्पष्ट हुआ,पर रचना के अंत में..''बशर्ते तुम्हें मालूम हो..''

पर संशय कायम रहा,यदि व्यक्ति आस्तिक है तो निश्चित ही उसे इसपर तो कोई संदेह नही होगा के ईश्वर तो 'सर्वज्ञ' है!

हाँ भावावेग में तो कुछ भी प्रश्न पूछा जा सकता है वो अलग बात है!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 2:50am
श्रद्धेय विजय निकोर जी, आपकी प्रतिक्रिया अमूल्य है. //अब कोई भी प्रश्न जो हल नहीं होता, उसे समर्पण भाव से भगवान को सोंप देता हूँ .... शांति मिल जाती है।// - यह भाव पथदर्शक है. मैं कृतार्थ हुआ. प्रणाम.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 2:41am
आदरणीया कांता जी, आपका हार्दिक आभार.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 2:39am
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी, आप मेरी रचना पर आए. आपका हार्दिक आभार. आ. गोपाल नारायण जी को मैंने जो लिखा है उससे आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा. "हे मेरे ईश्वर" व्यक्तिवाचक नहीं है. आपने इसे 'आत्मगीत' क्यों कहा मुझे समझ में नहीं आया. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 2:33am

भाई सोमेश कुमार जी, आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 2:28am
आदरणीय गोपाल नारायण जी, इंसान इस धरती पर आने के साथ ही अपने अस्तित्व के बारे में सचेत हो उठता है. कभी वह मुखर होता है कभी उसकी अभिव्यक्ति मूक ही रहती है. उसे अपने अस्तित्व के पीछे का रहस्य मालूम नहीं होता - यही उसका "मूल प्रश्न" है. बाल्यावस्था में मन का यह आलोड़न सबसे पवित्र होने के कारण वह आकाश को भी चीरने को तैयार रहता है लेकिन उसे उत्तर नहीं मिलता. अपनी चंचलता लिए ही वह यौवन में प्रवेश करता है. यौवन में शरीर सीधा रहता है - हाईफन की तरह तथा यह बाल्यावस्था व वृद्धावस्था के बीच की अवस्था है अर्थात जीवन वाक्य में हाईफन की तरह है. अल्पविराम बुढ़ापे की झुकी कमर और जीवन के अंत के पहले की अवस्था को दर्शा रहा है. हर अवस्था से गुजरते हुए इंसान अपना अस्तित्व और उसके कारण की तलाश में रहता है. मृत्यु के बीच ईश्वर से उसका यही प्रश्न है - वही मूल प्रश्न 'क्या' 'क्यों' 'कैसे' 'कब तक'. क्योंकि वह इस खोज में हार गया है, कवि ईश्वर से भी संदेह व्यक्त कर रहा है. आपने इस रचना को, जो मेरी एक बांग्ला कविता का रूपांतर है, सम्मान दिया. आपका हृदय से आभार. सादर
Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 2:28am

आपकी रचना पढ़ते हुए ४ आश्रमों का ख्याल आया....बचपन में/यौवन में तो इतने प्रश्न मन में नहीं उठते थे.... अब कोई भी प्रश्न जो हल नहीं होता, उसे समर्पण भाव से भगवान को सोंप देता हूँ .... शांति मिल जाती है। आपकी रचना ने सोचने को बहुत कुछ दिया। हार्दिक धन्यवाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service