For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन.....

हरी पत्तियो से ढके 
और फलों से लदे 
पंछियोंं के घने बसेरे
आस-पास वृहद सागर सा लहराता वन,
आल्हादित हैं पवन-बहारें
सॉझ-सवेरे झंकृत होते
पंछियो के कलरव स्वर
नदियों की कल-कल,
आते-जाते नट कारवॉ
उड़ते गुबार, मद्धिम होती रोशनी, आँख मींचते बच्चे
तम्बू में घुस कर खोजते, दो वक्त की रोटी...
पेट की आग का धुआँं, करता गुबार
रूॅधी सांसों के कुहराम
आधी रोटी के लिए करते द्वन्द
तलवारें चमक जाती, बिजली सी
धरा पर मासूम चटाईयों के बिछते ही
चूल्हा बुझ जाता
सो जाती हैं आखें
अपलक सुनहरे स्वप्न में.....
स्वर्ण हिरण की अव्यक्त व्यथा
ज्येष्ठ माह की अग्नि में झुलसता गोश्त
मॅुह तक आ कर फिर गायब हो जाता
नन्दन वन सा आनन्द.....
गूंगों के मुख का बतासा ....नींद खुलते ही...
सुस्वाद की घनी छॉंव
पथ में बिखर कर भी सहेजती

जीवन ....।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 11, 2015 at 8:28am

आ0 वामनकर भाई जी, आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 29, 2015 at 11:05pm

आदरणीय केवल जी इस भावपूर्ण और अनुभूतिपरक रचना पर हार्दिक बधाई निवेदित है....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 9:26pm

आ0 सौरभ सर जी, पहले इस कविता का शीर्षक था "वृक्ष"  बाद में इसको  "जीवन" कहा....मैने सोचा जीवन और वृक्ष में ज्यादा अंतर नही होता है, वृक्ष और जीवन  में आत्मा-परमात्मा सा साम्य ही है.  आपकी दिव्य दृष्टि व अंतर्भाव  के लिये सहृदय  आभार,  सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 8:55pm

उड़ते गुबार, मद्धिम होती रोशनी, आँख मींचते बच्चे
तम्बू में घुस कर खोजते, दो वक्त की रोटी...
पेट की आग का धुआँं, करता गुबार
रूॅधी सांसों के कुहराम
आधी रोटी के लिए करते द्वन्द
तलवारें चमक जाती, बिजली सी
धरा पर मासूम चटाईयों के बिछते ही
चूल्हा बुझ जाता
सो जाती हैं आखें
अपलक सुनहरे स्वप्न में.....
स्वर्ण हिरण की अव्यक्त व्यथा
ज्येष्ठ माह की अग्नि में झुलसता गोश्त
मॅुह तक आ कर फिर गायब हो जाता
नन्दन वन सा आनन्द.....
गूंगों के मुख का बतासा ....नींद खुलते ही...
सुस्वाद की घनी छॉंव
पथ में बिखर कर भी सहेजती
जीवन ....।

उपर्युक्त पंक्तियाँ स्वतः संप्रेष्य हैं.
वैचारिकता के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 8:06pm

आ0  गोपाल भाई जी,  सादर प्रणाम!   एक कवि की अंतर्दशा विस्फोटक सी होती है, वह कब? कहां? कैसे ? चोट करता है. यह कविता ही स्पष्ट करती  है. आपका तहेदिल से बहुत-बहुत  आभार.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 7:59pm

आ0  बागी सर जी,  सादर प्रणाम!   कविता पर सकारात्मक एवम विस्तृत सम्वेदनात्मक भावार्थ  को विस्तारित करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत  आभार.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 7:53pm

आ0 श्याम  नारायण भाई जी,  सादर प्रणाम!   कविता पर सकारात्मक टिप्पणी हेतु आपका  बहुत-बहुत  आभार.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 7:51pm

आ0 समर भाई जी, आदाब!   कविता पर आपकी उपस्थिति मात्र से ही मेरी आत्मा में ऊर्जा का संचार हो जाता है    आपका  बहुत-बहुत  आभार.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 7:45pm

आ0 मोहन भाई जी, प्रणाम!   कविता की गम्भीरता व महत्ता पर आपके अमूल्य शब्द औषधि का कार्य कर रहे हैं. आपका  बहुत-बहुत  आभार.  सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2015 at 1:52pm

बड़ी ही अनुभूतिपरक रचना है , बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"यूँ तो ग़ज़ल देखने में अच्छी है फिर भी मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत है। मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए…"
3 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1 दिल…"
8 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का जी गुणीजनो की इस्लाह अच्छी हुई है"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मार्ग दर्शन व अच्छी इस्लाह के लिए सुधार करने की कोशिश ज़ारी है"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय इतनी बारीक तरीके से इस्लाह करने व मार्ग दर्शन के लिए सुधार करने की कोशिश…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन पर आपकी सूक्ष्म समीक्षात्मक उत्तम प्रतिक्रिया का दिल…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला नहीं हुआ,  जनाब  ! मिसरे परस्पर बदल कर देखिए,  कदाचित कुछ बात  बने…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आराम  गया  दिल का  रिझाने के लिए आ हमदम चला आ दुख वो मिटाने के लिए आ  है ईश तू…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्श के लिए आभार। तीसरे शेर पर…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service