For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसी के चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

1222/ 1222/ 1222/ 1222

किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की                       *पेट

 

जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है

ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

 

न जाने नींद कैसे आती है ऐ बेरहम तुझको

तेरे कारे सितम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

 

कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले

कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की               

 

पलट के देख लो मायूस चेहरों की तरफ़ इक बार

किस उम्मीदे करम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की 

-मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 793

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:55pm

आदरणीय वीनस जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:54pm

आदरणीय सौरभ सर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचनाकर्म सार्थक हुआ आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय श्री सुनील जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी नवाजिशों के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया आप स्वयं बहुत अच्छे ग़ज़लकार हैं आपकी सराहना हमेशा हर्षित करता है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:51pm

आदरणीया शिखा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:51pm

आदरणीय केवल प्रसादजी आपका दिल से आभार

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 11:19am

कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले

कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की    

ऐसी रदीफ़ को कैसा निभाया है ..
वाह वा
दिल से दाद क़ुबूल करें
जिंदाबाद ग़ज़ल है
एक एक शेर कीमती है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 7:25pm

किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
भाई शिज्जू जी, मैं तो इस मतले पर ही निसार हो गया. बार-बार बधाइयाँ, बार-बार वाह-वाह आप भी अवश्य सुनियेगा..

जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
यह शेर भी बहुत बड़ा है. शानों पर एँड़ियाँ उचका कर ऊपर झांकने वाले जब ऊपर चढ़ जाते हैं, तो फिर उन लोगों से वास्ता नहीं रखते. इस सच्चाई को क्या सुन्दर मान मिला है !

इस व्यवस्थित ग़ज़ल केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, भाईजी.

आपकी ग़ज़लें कितनी गहनतर होती जा रही हैं, यह प्रस्तुति उसका भी पैमाना है.
शुभ-शुभ

Comment by shree suneel on May 28, 2015 at 8:51am
जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की... ख़ूब.. उम्दा. .
आदरणीय शिज्जु सर, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल खास तौर से इस शे'र के लिये हार्दिक बधाई आपको.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:46pm

आदरणीय शिज्जु भाई आपकी बेहतरीन ग़ज़लों का सिलसिला जारी है उन्ही में एक और ग़ज़ल सम्मिलित हो गई 

इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service