For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - गीत कविता ग़ज़ल रुबाई क्या ? // --सौरभ

२१२२ १२१२ २२

साफ़ कहने में है सफ़ाई क्या ?
कौन समझे पहाड़-राई क्या ?

चाँद-सूरज कभी हुए हमदम ?
ये तिज़ारत है, ’भाई-भाई’ क्या ?

सब यहाँ जी रहे हैं मतलब से
मैं भी जीयूँ तो बेवफ़ाई क्या ?

चाँद है वो, मगर सितारों की
उसने फिर से सभा बुलाई क्या ?

क्या अदब ? लाभ पढ़, मुनाफ़ा लिख
गीत कविता ग़ज़ल रुबाई क्या ?

मुट्ठियों की पकड़ बताती है
चाहती है भला कलाई क्या !

खुदकुशी के हुनर में माहिर हूँ
कामना क्या, मुझे बधाई क्या ?

लग गया खूँ अगर किसी मूँ को,
फिर तो मालूम है, दवाई क्या !
***************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 2088

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 25, 2015 at 11:49pm

भाई मनोज कुमार अहसास जी,

//क्या ख़ुदकुशी हुनर हो सकती है//

किसी पद्य-रचना में शब्दों को तीन तरह से प्रयुक्त किया जाता है. अभिधा मूलक शब्द संयोजन, अभिव्यंजना मूलक शब्द-संयोजन और लक्षणा मूलक शब्द संयोजन.
अभिधा मूलक का अर्थ है कि शब्द अपने शब्दार्थ को ही परावर्तित करते हैं. ऐसे प्रयोग पद्य में बहुत सही नहीं माने जाते. क्योंकि कविता या पद्य-रचनाएँ इंगितों या इशारों के माध्यम से लक्ष्य को भेदने की कला का नाम है. पद्य-रचनाओं में अभिव्यंजना मूलक शब्दों की ही आवश्यकता हुआ करती है.
ये तो फिर ग़ज़ल है जिसका हर तरह से कलेवर अत्यंत कमनीय होता है.

इस शेर के बाबत कहूँ तो, जिसका हुनर खुदकुशी ही हो, यानी आत्महंता की प्रवृति हो उसके किस काम की चर्चा हो. यानी, स्वयं पर आत्ममुग्ध व्यक्तियों पर यह व्यंग्य है, यह शेर.

विश्वास है, मैं संतुष्ट कर पाया.
शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 25, 2015 at 11:49pm

आदरणीय समर साहब, आपसे मिला मुखर अनुमोदन मेरे लिए पुरस्कार है.

’जीलूँ’ निस्संदेह एक सार्थक ऑप्शन है सर.
लेकिन ’जीयूँ’ और ’जीलूँ’ के बारीक अन्तर को समझना भी उचित होगा. ’जीयूँ’ में इसी लिहाज में ’जीते आ रहे’ का भान है जबकि ’जीलूँ’ कहने में ’इस’ तरह यानी मतलबी तौर पर ’अब से’ जीने का भान हो रहा है. यानी पहले से ऐसे जीते नहीं आ रहे थे. मेरे शेर में ’जीयूँ’ का आशय ’मतलब या स्वार्थ में खुद को जीते जाने को’ उचित ठहराना है.
इस आयाम से इस शेर को देख कर मुझसे कहिये क्या ’जीलूँ’ कहना उचित होगा. जिज्ञासा बनी है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 25, 2015 at 11:49pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपसे मिला खुला अनुमोदन मेरे लिए सम्मान है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 25, 2015 at 11:49pm

आदरणीय नरेन्द्र जी, ग़ज़ल को मान देने केलिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by नादिर ख़ान on May 25, 2015 at 10:51pm

साफ़ कहने में है बुराई क्या ?
कौन समझे पहाड़-राई क्या ?

चाँद-सूरज कभी हुए हमदम ? 
ये तिज़ारत है, ’भाई-भाई’ क्या ?

आदरणीय सौरभ सर बहुत खूब लिखा है आपने एक से बढ़ कर एक  शेर कहे दिल खुश हो गया 

सब यहाँ जी रहे हैं मतलब से
मैं भी जीयूँ तो बेवफ़ाई क्या ? ....  अच्छा तंज़ है ......

बहुत खूब... सर जी ...

Comment by मोहन बेगोवाल on May 25, 2015 at 10:48pm

आ0 सौरभ जी, सभी अशआर कमाल की बात कह  गए - दाद कबूल करें


Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 9:54pm

आ0 सौरभ सर जी, बहुत प्यारी गज़ल के लिये ढेरो दाद कुबूल करे. सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 25, 2015 at 4:38pm

आ० सौरभ जी

बेहतरीन गजल हुयी है  . एक से बढ़कर एक शेर  . नवीन कल्पना और उद्भावना के साथ ---

लग गया खूँ अगर किसी मूँ को,
फिर तो मालूम है, दवाई क्या ?

सादर  .

Comment by मनोज अहसास on May 25, 2015 at 3:44pm
हम आपकी ग़ज़ल पर कुछ कहे इस काबिल तो है नहीं हमारे लिये तो आप जैसे वरिष्ट ग़ज़लकारो से सीखने से बड़ा सौभाग्य कुछ नहीं हो सकता । आपने पाठक बनने का सुझाव दिया था इसलिए आजकल पढ़ रहे है और सीखने का प्रयास चल रहा है
पर ये वाकई बहुत अच्छी ग़ज़ल है नमन करता हूँ
एक बात ये समझ नहीं आई क़ि क्या ख़ुदकुशी हुनर हो सकती है
क्योंकि हुनर तो वो होता है जो बार बार निपुणता के साथ ,बहुत कुशलता से किया जा सके जबकि
ख़ुदकुशी तो मानव एक बार ही कर सकता है और ये शब्द सदैव एक विशेष अर्थ में ही प्रयोग होता है
थोडा मार्गदर्शन कर दे
मेहरबानी
सादर
Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 2:36pm
आली जनाब सौरभ पांडे जी, आदाब,ख़ूबसूरत,कामयाब,मुकम्मल, नायाब ,बैशक़ीमती ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"मैं भी जीयूँ तो बेवफ़ाई क्या ?"

इस मिसरे में "जीयूँ" की जगह "जीलूँ" करना क्या उचित होगा ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service