For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नव - स्पंदन
____________


मृगतृष्णा कैसी यह
कौन सी चाह है
दिनमान हैै जलता हुआ
ये कौन सी राह है

चल रही हूँ मै यहाँ
एक छाँह की तलाश में
मरू पंथ में यहाँ
कौन सी तलाश है

बाग वन स्वप्न सरीखे
कलियाँ कहाँ कैसी भूले
मन की तलहटी में
प्रिय का निवास है

सुरम्य वादी है वहां
छुपी हुई एक आस है
मुँद कर पलकों को
प्रिय दर्शन की आस है

प्राण की सुधी ग्रंथी में
आजतक हो बसे
जलती रही हूँ निरंतर
चाहत मेरी एक प्यास है

कंठ में नित राग
आतुर गीत विरह के
चिता भूमि सी लगे
प्रिय बिना संसार ये

विधान विधाता ने रचा
रोये निरीह निबल मन
अस्मिता प्रीत की छुपाये
नव - स्पंदन की आस है


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 7:12am
आदरणीय गणेश जी बागी जी कविता के भाव को आपने समझा उसका मर्म आपने पकडा । तकनीकी कमजोरी के बावजूद कविता पर मेरा हौसला वर्धन किया इसके लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । प्रति उत्तर के देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 7:07am
तहे दिल से आभार आपको आदरणीय राम आसरे जी कविता पसंदगी के लिए
Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 7:04am
आभार आपको आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी कविता पर मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by kanta roy on July 4, 2015 at 11:47pm
कविता लेखन करती हूँ मै ... पर इस विधा से हूँ अनजान .....आदरणीय सौरभ सर जी सच कहा है आपने पंक्तियों को सुनोयोजित करना बेहद जरूरी है एक सार्थक निर्माण के लिए ...... पिछले दिनों मैने आप सब के सानिध्य में कुछ सीख रही हूँ । उम्मीद है कि आपके आशानुरूप मै शब्दों को भावपूर्ण कविता में सार्थकता देकर आपकी उम्मीदों पर पूरा उतरूँगी । सादर नमन
Comment by Ram Ashery on July 4, 2015 at 11:29pm

अति सुंदर कृति मन के वेदना को अपने जिस खूबी से व्यक्त किया सच मेदिल की अंतस्थल को छू रही है आपको इसके लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:40pm

भावों का सुन्दर समावेश, सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है इसके लिए बधाई, साथ ही आश्चर्य यह कि आदरणीय सौरभ जी ने बहुत ही बहुमूल्य बातें अपनी टिप्पणी में कही है जिसपर आपका प्रतिउत्तर अप्राप्त है.

Comment by Ram Ashery on June 16, 2015 at 11:36am

आपने अपने मन की व्यथा को बड़े ही भाव पूर्ण ढंग से रखा है आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 4:56pm
आदरणीया कांता जी ..इस सुंदर रचा के लिए ह्रदय से बधाई सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 10:07am

आदरणीया सहभागिता हेतु हार्दिक धन्यवाद.
इस प्रस्तुति के माध्यम से आपकी संवेदना को सार्थक शब्द मिले हैं. किन्तु, साथ ही यह भी आवश्यक है कि आप उन्हें सार्थक ढंग से सुव्यस्थित करें. यह सही है कि कविता भावोद्गार की अन्यतम विधा है. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि यदि यह कोई विधा है तो इसके विधान भी अवश्य होंगे. निवेदन है, आप इस ओर भी गंभीरता से सोचें.
सादर

Comment by kanta roy on May 26, 2015 at 12:06pm
बहुत बहुत आभार आपको कविता पसंदगी के लिये आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service