For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भगवान की तलाश :लघु कथा: हरि प्रकाश दुबे

“वो देख सामने जहां सूरज निकल रहा है , वहीँ अपना घर है, बेकार में भटका मैं दर –दर, सबने कितना समझाया था, मां - पिता और पत्नी कितना रोई थी, पर मुझे तो भगवान की तलाश करनी थी, पर कहीं नहीं मिला बल्कि लोगों ने कभी भिखारी तो कभी ढोंगी समझा, अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे ,चल बेटा अब घर चलें ,तूने भी बड़ा साथ निभाया , वो देख सामने नाव भी आ रही है चल तेज़ चल, और आज ही ये गेरुआ वस्त्र इसी गंगा माँ को समर्पित कर दूंगा !”

“इतना सुनते ही उस साधु का कुत्ता बड़ी जोर से भौंका जैसे उस साधु की बात का समर्थन कर रहा हो , और गंगा किनारे के पंछी आसमान में उड़ गए जैसे उनके लिए मार्ग खाली कर रहें हों !”

दोनों के जीवन में एक नया सवेरा हो चुका था !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 1:19am

मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा  को समर्थन देती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय हरि प्रकाशजी.

बहुत खूब !

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:36am

काश ये सब समझ पाते तो इस तरह जीवन से पलायन नहीं करते , बहुत सुन्दर आदरणीय..

Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 10:55pm

आपका  बहुत - बहुत  आभार  आ. मिथिलेश  भाई  ! सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 18, 2015 at 10:35pm

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी बहुत ही बेहतरीन लघुकथा हुई है 

स्वयं में भगवन है बस तलाश करना है 

बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 18, 2015 at 5:19pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी जिस प्रकार से ये रचना कम शब्दों में ही ये निर्णय कर देती है की...... इश्वर की प्राप्ति हमें भगवा पहन कर  नहीं होगी वरन ये तो हमें घर में ही प्राप्त हो सकते है यदि हम सच्चे मन से उन्हें तलाश करना चाहे, ... वो बहुत ही सराहनीय है .

इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक  बधाई स्वीकार करे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 18, 2015 at 11:35am

बहुत सुन्दर , आदरणीय हरि भाई , सच बात है , असली तलाश तो खुद मे ही करना  होता है , वहीं से हम सब भागे हुये हैं !! चलो किसी की आँख तो खुली , कभी हमारी भी खुलेगी ॥ आपको हार्दिक बधाई , रचना के लिये ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 18, 2015 at 10:00am

achhee rachnaa

Comment by shree suneel on May 17, 2015 at 11:00am
आदरणीय हरि प्रकाश जी, बहुत हीं सुन्दर लघु-कथा. ये संदेश देती कि घर में हीं ईश्वर हैं. वैराग्य जरूरी नहीं.
"अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे... " बहुत महत्वपूर्ण पंक्ति है ये.
आपकी अच्छी लघु-कथाओं में एक. हार्दिक बधाइयाँ आपको.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:15pm

बहुत सुंदर लिखा ,आदरणीय हरिप्रकाश जी. सच! मैंने अपने आस-पास ऐसे कई ईश्वर की तलाश में भटक रहे लोगों को देखा है. और वो गृहष्थ जीवन की जिम्मेदारियों को भूल भी चुके है. प्रस्तुति पर बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 16, 2015 at 9:18pm

आ० दुबे जी

तेरा साईं  तुज्झ में देख सके तो देख  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
13 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service