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दृढ़ता में
भूखे श्रमिकों के श्रम रखते
विकास की नींव
सफलता के केतु आकाश को ढक देते
धरा से गगन को चूमती अट्टालिकाएं उकेरतीं,
झुग्गियों का दर्द
आलसी, धुंध चढ़ जाता ऊपरी मंजिल तक
धूल में लिपटे श्रमिक झाड़ देते
लोभ, इच्छा और आवश्यकताएं भी
श्रम, अटल सत्य-
तनिक भी अपेक्षा नहीं रखती।
टेढ़ी-मेढ़ी सकरी पगड-िण्डयां
स्वयं राजपथ होने का दंभ भरतीं
हुंकारती, अहं के आकार-प्रकार
बहुआयामी अपेक्षाएं- लक्ष्य से कोसों आगे,
दूर की सोच सदैव निराश करती
तृष्णा तो बिन सिर-पैर की उथली-छिछली
घृणा पत्थर की लकीर.....लहरों पर खेलती
उकसाती क्रोध, अपनों के प्रति
अनगढ़ मनुष्य टूट कर बिखर जाता
ताश के पत्तों सा
विवेक, पंथ नहीं अपनाता- वह उड़ता है,
बेरोक-टोक
परिणाम की अपेक्षा किए बगैर
पुरवाई मन को आल्हादित तो-
पछुवा अति शुष्क
ऐंठ देती सुख की डोर, श्वॉंस भी
दंभ खीसें निपोरता
असफलताएं व्यंग्य कसतीं
परिणाम! ढाक के वही तीन पात,
माया मिली न राम,
अपेक्षाओं के संग्राम निमित्त हैं कुरूक्षेत्र में
रथी, बिना सारथी के.....कौतुक ही,
अर्जुन, स्वयं को भेदता
विजयी होते भीष्म-द्राेण !
कर्ण-दुर्योधन अवाक्.......हतप्रभ,
महत्वपूर्ण है- ...एक कुशल सारथी
अपेक्षाओं की जंग में
श्रम, शालीन-तथागत,....सदा उपकृत करते।


के0पी0सत्यम /मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2015 at 8:09pm

आ0 सौरभ सर जी, कविता पर आपका अनुमोदन पाकर मैं धन्य हुआ.  आपका हृदयतल से आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2015 at 11:34pm

वाह वाह !!

भाई केवल प्रसादजी, आपकी भावदशा प्रभावित कर गयी. हृदय से बधाइयाँ.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 7:56pm

//लाइव महोत्सव के आयोजन के दिन, आयोजन के विषय पर कविता किन्तु आयोजन में प्रस्तुत न कर पृथक से प्रस्तुत की गई, बात समझ नहीं आई. आयोजन में सहभागिता से दूरी का कारण जरुर बताएगा.// आ0 वामनकर भाई जी,  आयोजन में कविता  लिखने भर मात्र से काम नहीं चलता. बल्कि उस पर समय भी देना जरूरी होता है!  ऐसा मैं समझता हूँ  आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 7:49pm

आ0 जितेंन्द्र भाईजी,  आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 7:48pm

आ0 नारायण भाई जी,  आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 7:46pm

आ0 गोपाल सर जी, आपका आभार,  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2015 at 9:32am

आदरणीय केवल प्रसाद भाई जी, लाइव महोत्सव के आयोजन के दिन, आयोजन के विषय पर कविता किन्तु आयोजन में प्रस्तुत न कर पृथक से प्रस्तुत की गई, बात समझ नहीं आई. आयोजन में सहभागिता से दूरी का कारण जरुर बताएगा. फिलहाल इस प्रस्तुति पर बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:37am

बहुत सुंदर आदरणीय केवल जी. इस उत्कृष्ट रचना पर आपको हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on May 10, 2015 at 10:34am
जनाब केवल प्रसाद जी ,आदाब,अच्छी कविता हुई है ,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on May 9, 2015 at 3:56pm
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 

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