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ग़ज़ल नूर- चाहता था सँवरना ताजमहल

२१२२/१२१२/२२ (११२)
याद हम को तभी ख़ुदा आया

जब कोई सख्त मरहला आया
.
उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया
.
और करता भी क्या उसे रखकर 
साथ ख़त ही के, दिल बहा आया.
.
डूबने कब दिया अनाओं ने 
तर्क करते ही डूबना आया. 
.
चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.
.
तू उफ़क़ अपना देख ले आकर
मैं तेरा आसमां झुका आया.
.
सोचता है अगरचे कब्र में है    
‘नूर’ दुनिया में ख़्वाह-मख़ाह आया
.

निलेश 'नूर'
मौलिक अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2015 at 6:25pm

आदरणीय नीलेश भाई , एक के बाद एक लाजवाब गज़लें कह रहें हैं आप । इस गज़ल के भी सभी अशआर   बहुत अच्छे हुये हैं । हार्दिक बधाई आपको ॥

Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 5:00pm

चाहता था सँवरना ताजमहल 
मैं वहाँ आईना लगा आया.... वाह..नायाब शेर... लाजबाव   हार्दिक बधाई आपको

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:22pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ..
शुक्रिया आ. वीनस जी 
आप सबके सानिध्य में जो कुछ बन पा रहा है ..इसी मंच को समर्पित करता हूँ..
वीनस जी..आप मुझे साहब कहकर शर्मिंदा कर रहे हैं...अगर शागिर्दी न मिले तो भाई होना पसंद करूँगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:20pm

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:20pm

शुक्रिया भाई जान गोरखपुरी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:19pm

शुक्रिया भाई उमेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:19pm

शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 4:19pm

शुक्रिया आ. डॉ विजय जी 

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2015 at 4:07pm

नूर साहब आपकी ये ग़ज़ल भी खूब पसंद आई

ढेरो दाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 4:04pm

वाह वा वाह वा !

एक खूबसूरत ग़ज़ल के झरोखे से आपको फिर देखा.. लाज़वाब हैं आप, साहेब..

दाद दाद दाद !!

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