For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ लोट रही-चीखें क्रंदन बस यहां वहां

एक जोर बड़ी आवाज हुयी

जैसे विमान बादल गरजा

आया चक्कर मष्तिष्क उलझन

घुमरी-चक्कर जैसे वचपन

----------------------------------

अब प्राण घिरे लगता संकट

पग भाग चले इत उत झटपट

कुछ ईंट गिरी गिरते पत्थर

कुछ भवन धूल उड़ता चंदन

-------------------------------

माटी से माटी मिलने को

आतुर सबको झकझोर दिया

कुछ गले मिले कुछ रोते जो

साँसे-दिल जैसे दफन किया

------------------------------

चीखें क्रंदन बस यहां वहां

फटती छाती बस रक्त बहा

कहीं शिशु नहीं माँ लोट रही

कहीं माँ का आँचल -आस गयी

-------------------------------

कोई फोड़े चूड़ी पति नहीं

पति विलख रहा है 'जान' नहीं

भाई -भगिनी कुछ बिछड़ गए

रिश्ते -नाते सब बिखर गए

------------------------------

सहमा मन अंतर काँप गया

अनहोनी बस मन भांप गया

भूकम्प है धरती काँप गयी

कुछ 'पाप' बढ़ा ये आंच लगी

-----------------------------

सुख भौतिक कुदरत लील गयी

धन-निर्धन सारी टीस गयी

साँसे अटकी मन में विचलन

क्या तेरा मेरा , बस पल दो क्षण

--------------------------------

अब एक दूजे में खोये सब

मरहम घावों पे लगाते हैं

ये जीवन क्षण भंगुर है सच

बस 'ईश' खीझ चिल्लाते हैं

---------------------------

उधर हिमाचल से हिम कुछ

आंसू जैसे ले वेग बढ़ा

कुछ 'वीर' शहादत ज्यों आतुर

छाती में अपनी भींच लिया

------------------------------

क्या अच्छा बुरा ये होता क्यूँ

है अजब पहेली दुनिया विभ्रम

जो बूझे रस ले -ले समाधि

खो सूक्ष्म जगत -परमात्म मिलन

-----------------------------------

कुदरत के आंसू बरस पड़े

तृषित हृदय सहलाने को

पर जख्म नमक ज्यों छिड़क उठे

बस त्राहि-त्राहि कर जाने को

-------------------------------

ऐसा मंजर बस धूल-पंक

धड़कन दिल-सिर पर चढ़ी चले

बौराया मन है पंगु तंत्र

हे शिव शक्ति बस नाम जपें

-------------------------------

इस घोर आपदा सब उलटा

विपदा पर विपदा बढ़ी चले

उखड़ी साँसे जल-जला चला

हिम जाने क्यों है हृदय धधकता

---------------------------------

 

  आओ जोड़ें सब हाथ प्रभू

 तत्तपर हों  हर दुःख हरने को

मानवता की खातिर 'मानव'

जुट जा इतिहास को रचने को

----------------------------------

हे पशुपति नाथ हे पंचमुखी

क्यों कहर चले बरपाने को

हे दया-सिंधु सब शरण तेरी

क्यों उग्र है क्रूर कहाने को

----------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

२.३०-३.०२ मध्याह्न

कुल्लू हिमाचल

Views: 885

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 29, 2015 at 3:15pm

आदरणीय मनोज जी इस पीड़ा को आप ने समझा और कुदरत को नमन किये अच्छा लगा
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 29, 2015 at 3:14pm

आदरणीय मोहन जी रचना इस त्रासदी की व्यथा कथा कह सकी और आप ने सराहा अच्छा लगा
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 29, 2015 at 3:13pm

आदरणीय मिथलेश जी इस त्रासदी में प्रभु सब को हिम्मत दें आप से सराहना मिली ख़ुशी हुयी
 हम प्रभु से प्रार्थना और दिल के जज्बात को ही तो व्यक्त कर पा रहे
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 29, 2015 at 3:11pm

आदरणीय बागी जी इस घोर आपदा को व्यक्त करती रचना को आपने मान दिया आप का हृदय पीड़ा को महसूस कर सका लिखना सार्थक रहा
आप से प्रोत्साहन मिला मन खुश हुआ हम प्रभु से प्रार्थना और दिल के जज्बात को ही तो व्यक्त कर पा रहे
आभार
भ्रमर ५

Comment by मनोज अहसास on April 29, 2015 at 7:26am
नमन
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 6:39am

आदरणीय SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR जी मार्मिक एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 10:10pm

प्रकृति के कहर और उससे उपजी त्रासदी को आपने भावपूर्ण शब्द दिए है.

आदरणीय  सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी, सार्थक भावाभिव्यक्ति.

सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 9:21pm

आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी, प्राकृतिक आपदा के फलस्वरूप कवि हृदय से निकलती चीत्कार सफल रूप से अभिव्यक्त हुई है, कुछ कहते नहीं बन रहा, इस सार्थक अभिव्यक्ति की मैं सराहना करता हूँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
19 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service