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और कितने नाम हैं..अतुकांत/ छन्दमुक्त रचना -नूर

कोई झील बे-चैन सी,

कोई प्यास बे-खुद सी,

कोई शोखी बे-नज़ीर सी,

तेरी आँखों के और कितने नाम है.....

 

कोई ख़्याल बे-शक्ल सा, 

कोई सितारा बे-नूर सा,

कोई बादल बे-आब सा,

मेरे अरमानों के और कितने नाम है.....

 

कोई रात बे-पर्दा सी,

कोई बिजली बे-तरतीब सी,

कोई अंगडाई बे-करार सी,

तेरी अदाओं के और कितने नाम है ....

 

कोई पत्थर बे-दाम सा,

कोई झरना बे-ताब सा,

कोई मुसाफिर बे-घर सा,

मेरी मोहब्बत के और कितने नाम है......

 

कोई दौलत बे-हिसाब सी,

कोई शोहरत बे-शुमार सी,

कोई गाडी बे-लगाम सी,

तेरी यादों के और कितने नाम है......

 

कोई आंसू बे-सबब सा,

कोई रिश्ता बे-मेल सा,

कोई इलज़ाम बे-वहज सा,

मेरी वफ़ा के और कितने नाम है......

 

और कितने नाम हैं .........
.
नूर
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 840

Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 10:32pm

क्या कहने आदरणीय निलेश जी, कई कई बाते सलीके से साझा हुई है अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 9:44pm

आदरणीय नीलेश जी एक विचार आया है कि अगर रचना की शुरुआत किसी भूमिका से हो यथा -

और कितने नाम है 

तेरे मेरे मरासिम के 

कोई झील बे-चैन सी,

कोई प्यास बे-खुद सी,

कोई शोखी बे-नज़ीर सी,

तेरी आँखों के और कितने नाम है.....

कहीं से शुरुआत लगे तो नज्म मुक्कमल लगेगी. ऐसा मुझे लग रहा है. विचार न जमे तो ऐसे भी बहुत उम्दा है.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 8:26pm

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 8:25pm

शुक्रिया आ. सुशिल जी 

Comment by shree suneel on April 28, 2015 at 5:24pm
कोई आंसू बे-सबब सा,
कोई रिश्ता बे-मेल सा,
कोई इलज़ाम बे-वहज सा,
मेरी वफ़ा के और कितने नाम है...क्या बात है.. बहुत ख़ूब आदरणीय नीलेश जी.
हार्दिक बधाईयां.
Comment by Sushil Sarna on April 28, 2015 at 3:23pm

कोई रात बे-पर्दा सी,
कोई बिजली बे-तरतीब सी,
कोई अंगडाई बे-करार सी,
तेरी अदाओं के और कितने नाम है ....

गज़ब की प्रभावी प्रस्तुति … गज़ब का शाब्दिक तालमेल .... बहुत ही दिलकश प्रस्तुति बन पड़ी है … पाठक अंत तक मंत्रमुग्ध हो कर रचना का रसस्वादन करता है … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं आदरणीय।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2015 at 3:10pm

खूब बतियाइये आप लोग..

:-))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 2:59pm

आ. मिथिलेश जी ..प्रतिक्रिया का शुक्रिया ..
हाँ और क्या... आप हम जैसे संवेदनशील लोग फिट कहाँ बैठते हैं :)))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 2:43pm
/अच्छा भला इंसान शायरी करने लगता है/
आदरणीय नीलेश जी
यानी हम लोग अच्छे भले की श्रेणी से बाहर हो गए है।
इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 1:32pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ...
ऐसे ही प्रश्नों का जवाब खोजते खोजते अच्छा भला इंसान शायरी करने लगता है :))
सादर 

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