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पूरी जवानी उसने नशे और जुएँ की लत और बाप की नीली बत्ती के रौब में होम कर दी ।

 

"अभी माँ व बाप को मरे अभी साल भर ही नहीं हुआ, और तुम्हारा नशे में यूँ दिन रात झूमना , आखिर तुम कब इसे छोड़ोगे ?

देखना रमन ! यह ड्रग्स कभी तुम्हारी जान ले के छोड़ेगी आज घर की एक एक चीज नीलाम हो चुकी है , यहाँ तक की नाते-रिश्तेदार , नौकर चाकर सब साथ छोड़ कर चले गये ।  मैं तुमसे तंग आ चुकी हूँ  अब तुम्हारे साथ और नहीं निभा सकती ।"

"हाँ हाँ  यहाँ  भी कौन  रोज तुम्हारा मुंह देखना चाहता है " रमन ने  जोर से चिल्लाते हुए कहा ।

" मैं भी तुम्हारी इन रोज की बकझक से तंग आगया हूँ  अगर साथ नहीं रह सकती तो जहाँ  जाना चाहो जिसके साथ जाना चाहो जा सकतीं हो मेरी तरफ से तुम आजाद  हो संध्या " ।

" बस बहुत हुआ अब चुप भी करो रमन " संध्या ने गुस्से से काँपते हुए होंठो से कहा ।   

आखिर एक रात वह अपनी दूधमुही बच्ची को साथ  लेकर रमन  का घर सदा के लिए छोड़ कर चली गई । आज वह हस्पताल के जनरल वार्ड की छतों को ताकते हुए अपने जीवन की अंतिम साँसों को गिन रहा है , एक जिंदा लाश की तरह ।

.

"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by Pankaj Joshi on April 28, 2015 at 11:12pm

धन्यवाद आदरणीय Omprakash Kshatriya ji

Comment by Omprakash Kshatriya on April 28, 2015 at 8:30pm
लघुकथा ने पूरी व्यथा ही कह दी पंकज जोशी जी
Comment by Pankaj Joshi on April 28, 2015 at 4:52pm

जी , आ. Aman Kumar जी , मैं आपसे सहमत हूँ ।धन्यवाद

Comment by Pankaj Joshi on April 28, 2015 at 4:51pm

धन्यवाद आ. जितेंद्र पस्टारिया जी।

Comment by Pankaj Joshi on April 28, 2015 at 4:50pm

धन्यवाद आ. Saurabh Pandey जी , यह मेरी दूसरी रचना है , आशा करता हूँ कि मैं आप लोंगो की अपेक्षा में खरा उतरूं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2015 at 1:14pm

आपकी किसी पहली प्रस्तुति से मैं गुजर रहा हूँ. इस प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ ..

आदरणीय गोपाल नरायनजी के कहे का संज्ञान लें.

शुभेच्छाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 28, 2015 at 10:00am

प्रस्तुति पर बधाई, आदरणीय पंकज जी

Comment by aman kumar on April 28, 2015 at 8:39am

.........महिला का ये हाल केसे हुया ?सुधार का प्रयास ? घर छोड़ने का फैसला जल्दी बाज़ी था क्या ? कुछ तो था  आपके अंदर रह गया जिसे शव्द नही मिले ! 

आभार 

Comment by Pankaj Joshi on April 27, 2015 at 8:34pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी उत्साह वर्धन करने के लिए  धन्यवाद , सादर

Comment by Pankaj Joshi on April 27, 2015 at 8:33pm

आदरणीय Dr Vijay Shankar ji , धन्यवाद , सादर 

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