For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :-एक चहरे में दूसरा क्या है

बह्र :- फ़ाईलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन

आईनागर ज़रा बता क्या है
एक चहरे में दूसरा क्या है

आग गुलज़ार कैसे बनती है
देखना है तो सोचता क्या है

किस लिये हम से पूछता है नदीम
तू नहीं जानता,हुवा क्या है

क्या छुपा कर रखा है सीने में
और होटों से बोलता क्या है

दिल को छू जाए तो ये जादू है
वरना आवाज़ में धरा क्या है

आईने की तरह चमकती है
हम बताऐं तुम्हें वफ़ा क्या है

दोनों बर्बाद हो गए देखो
दुश्मनी के लिये बचा क्या है

मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार
मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है

ख़ुद को "ग़ालिब" समझ रहा है "समर"
"या इलाही ये माजरा क्या है"

"समर कबीर"
(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 1681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 6:48pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हैसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by shree suneel on April 21, 2015 at 4:47pm
आदरणीय समर कबीर सर, इस शानदार, भरी-पूरी ग़ज़ल के लिए दिल से दाद.
आग गुलज़ार कैसे बनती है
देखना है तो सोचता क्या है

मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार
मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है

दिल को छू जाए तो ये जादू है
वरना आवाज़ में धरा क्या है
बहुत ख़ूब सर. बधाईयाँ.. बधाईयाँ
Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 10:45am
जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हैसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 10:41am
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत हो गई,ग़ज़ल का मान बढ़ गया,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 11:53pm

और बाक़ी दो ?...
विद्या ददाति विनयम 

Comment by Samar kabeer on April 20, 2015 at 10:51pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,मैंने लिखा था कि अशआर एसे ही रहने दूँ या तब्दील करें,आपने तो मुझे मिसरे भी सुझा दिये,मेरे भाई यह काम तो मैं ख़द भी बख़ूबी कर सकता हूँ,मजबूरी यह है भाई जैसा कि आपने ख़ुद लिखा है कि ये दोष बड़े बड़े शाईरों के यहाँ पाया जाता है,इसका मतलब यह हुवा कि इस दोष को मन्यता प्राप्त है,मैंने अपने पिछले कमेंट में लिखा था कि मैंने यह ग़ज़ल ग़ौर करने के बाद पोस्ट की है,यह सच है,अगर इस ग़ज़ल को दोष मुक्त करने से इसकी रवानी में बड़ा फ़र्क़ पड़ेगा ,इसलिये मेरे भाई इस ग़ज़ल को ज्यूँ का त्यूँ ही रहने देते हैं,मेरी आप से दरख़्वास्त है कि इस ग़ज़ल को पुन: पढ़ें और इसका लुत्फ़ लें |

"आग गुलज़ार कैसे बनती है ?
देखना है तो सोचता क्या है"

इस शैर में "तलमीह" है,इसे अगर दोष मुक्त कर देंगे तो तलमीह का मज़ा ही ख़त्म हो जाएगा |
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 20, 2015 at 9:10pm

दोनों बर्बाद हो गए देखो
दुश्मनी के लिये बचा क्या है  वाह! वाह!

मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार
मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है   लाजवाब शेर!

बहुत बहुत बधाई आ० समर सरजी!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 20, 2015 at 7:04pm
और होटों से बोलता क्या है ॥
दिल को छू जाए तो ये जादू है
वरना आवाज़ में धरा क्या है ॥
आईने की तरह चमकती है
हम बताऐं तुम्हें वफ़ा क्या है ॥
दोनों बर्बाद हो गए देखो
दुश्मनी के लिये बचा क्या है ॥
वाह ! आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, एक एक शेर लाजवाब है , बहुत बहुत मुबारकबाद आपको. सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 6:56pm

यदि शेर का भाव बदले बिना बदलाव संभव हो तो प्रयास करें..... कुछ सुझाव हैं 
आग गुलज़ार कैसे बनती है___ कैसे शोला बदन हुआ गुलज़ार 
दिल को छू जाए तो ये जादू है___ दिल में उतरे तो ये लगे जादू .
आईने की तरह चमकती है___ये चमकती है आईने की तरह.
 
 

Comment by Samar kabeer on April 20, 2015 at 6:33pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
17 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service