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ग़ज़ल-नूर -आँख से उतरा नहीं है

२१२२/२१२२ 
आँख से उतरा नहीं है 
बस!! कोई रिश्ता नहीं है. 

हम पुराने हो चले हैं 

आईना रूठा नहीं है.

मुस्कुराहट भी पहन ली  

ग़म मगर छुपता नहीं है.

साथ ख़ुशबू है तुम्हारी 

ये सफ़र तन्हा नहीं है.

तुम बदल जितना गए हो 

वक़्त भी बदला नहीं है.

टूट जाता है वो अक्सर 

जो कभी झुकता नहीं है.

है बदन पर धूल लिपटी 

दिल मगर मैला नहीं है.

वक़्त ने ठुकरा दिया बस 

वरना मुझ में क्या नहीं है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 672

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 7:09pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 7:08pm

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 4:49pm

आईने वाले शेर पर तो बस बार-बार वाह !

वैसे पूरी ग़ज़ल कमाल है ! .. दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय नीलेशजी.. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 18, 2015 at 4:39pm
छोटी बह्र में अच्छी ग़ज़ल कही है आ. नीलेश जी, दाद कुबूलें
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 4:28pm

शुक्रिया आ. उमेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 4:28pm

शुक्रिया आ. कृष्णा मिश्रा जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 4:27pm

शुक्रिया आ. नरेंद्र सिंह जी 

Comment by narendrasinh chauhan on April 18, 2015 at 4:03pm

है बदन पर धूल लिपटी दिल मगर मैला नहीं है.
वक़्त ने ठुकरा दिया बस वरना मुझ में क्या नहीं है.  बहोत खूब

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 17, 2015 at 10:56pm

मुस्कुराहट भी पहन ली

ग़म मगर छुपता नहीं है

वाह! छोटी बह्र पर बहुत सुन्दर रचना!बधाई आदरणीय!

Comment by umesh katara on April 17, 2015 at 10:24pm

शेर दर शेर खूबसूरत होती गयी है आपकी गजल बधाई सर

कृपया ध्यान दे...

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