२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ २२१२
तेरी महफ़िल के दिवाने को सनम और कोई महफ़िल भाती नही
तू जिसे जलवा दिखा दे,उसको अपनी याद भी फिर आती नही
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तेरी मस्ती में मै हूँ सरमस्त,मस्तों के कलन्दर भोले पिया
तेरी मूरत यूँ छपी दिल में के,सूरत कोई दिल छू पाती नही
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यूँ जिया में है भरी झंकार के,धड़कन मेरी पायल बन गयीं
मन थिरकता वरना क्यूँ ऐसे,मिलन के गीत सांसें गाती नही
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आफताबो-माहताबो-कहकशां रौशन हैं तेरे ही नूर से
इश्क़ बिन तेरे,न टरता कण भी,दुनिया क्षण को भी चल पाती नही
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वारि-वारी जाऊ तेरे रंगरेजा, ओ-मुसव्विर-ए-कायनात
कोई शय ऐसी नही जिसमें, तेरी जादूगरी भरमाती नही
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
आ० प्रतिभा जी मुक्त हृदय से प्रसंशा कर उत्साहवर्धन करने के लिए शुक्रिया!आभार!
आदरणीय Dr. Vijai Shanker सर बहुत बहुत आभार!
आदरणीय समर कबीर सर!आपकी सराहना ने रचना को जो मान दिया है! उसका मै दिली शुक्रगुजार हूँ! हार्दिक आभार!
आ० गिरिराज सर! रचना पर आपकी इस प्रतिक्रिया से मन गदगद हो गया,दिन बन गया आज का....गुरुवर आपके मार्गदर्शन के अनुसार ही और अधिक समय और संयम से रचनाकर्म में रत हुआ हूँ,उसी आशीर्वाद का परिणाम है ये रचना!अभिनन्दन आदरणीय!
इस गज़ल को क़व्वाली गायनशैली में लिखने का प्रयास किया है,गुरुजनों से मार्गदर्शन निवेदित है!
आदरणीय कृष्णा भाई , लाज्वाब रूहानी गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥
आदरणीय गोपाल सर! गुरुवर मेरा प्रयास आपको सार्थक लगा जानकर मन हर्षित हुआ!आभार आदरणीय!
आ० shyam narain जी रचना आपको पसंद आई!लेखन सार्थक हुआ,हृदयतल से आभार!
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