For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सम्मान : लघुकथा

"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 890

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on April 15, 2015 at 11:27pm

हरी भैया शुक्रिया दिल से

Comment by savitamishra on April 15, 2015 at 11:26pm

वंदना sis लडकियों को भी पैताने नहीं बैठने देते थे क्योकि उनमे देवी का रूप मानते थे ..मानते तो थोडा अब भी हैं ...सादर आभार आपका

Comment by savitamishra on April 15, 2015 at 11:25pm

आदरनीय गोपाल चाचाजी और आदरनीया गिरिराज भैया आप दोनों जन को सादर नमस्ते पहले ...
और जबाब राजेश दी के कमेन्ट से मिल ही गया होगा आपको ..मेरे मन को बखूबी राजेश दी और वंदना sis ने पढ़ा और बोला हैं |
सादर आभार आप दोनों जन का मेरा मार्गदर्शन करने के लिय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2015 at 10:57pm

इस लघु कथा का नाम स्वाभिमान होता तो ज्यादा बेहतर होता| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2015 at 10:55pm

स्वाभिमान को केन्द्रित कर लिखी गई लघु कथा बहुत शानदार ,मैं नहीं समझती इसमें सम्प्रेषणीयता  की कोई कमी है ,संस्कार के अनुसार बड़ों को अर्थात वृद्धों को सिरहाने पर बैठने  को कहते हैं वो स्त्री वृद्धा होगी जिसको  पैताने पर बैठने में स्वाभिमान आड़े आ रहा होगा वृद्धा भी न हो स्त्री तो थी जिसका सम्मान पहले किया जाता है ..आज के मोर्डन समाज में भी लेडीज फर्स्ट कहकर सम्मान दिया जाता है| बहुत- बहुत बधाई आपको सविता जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:04pm

आदरणीया सविता जी , मैं  भी कुछ कह नहीं पा  रहा हूँ , प्रयासरत  रहिये , शुभकामनायें सादर !

Comment by vandana on April 15, 2015 at 9:12pm

बदलते संस्कारों पर चोट करती सार्थक रचना

सच कहा आपने हमारे यहाँ अपने से बड़ों के पैताने बैठने के संस्कार हैं मुझे याद है दादी कहती थीं कोई बात नहीं लड़कियां तो सिरहाने भी बैठ जाती हैं पर माँ और पापा तुरंत कहते ....नहीं यह तो आदत पड़ती है लड़कियां और लड़के एक ही बात सीखें और आज तक बड़ों के आते ही खड़े हो जाना उनके लिए स्थान छोड़ देना सिरहाने न बैठना ये ऐसी बाते हैं जिन्हें देखकर बड़ों का हमेशा आशीर्वाद ही मिला है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2015 at 6:37pm

आदरनीया सविता जी , आदरणीय गोपाल जी की बातों से मै भी  सहमत हूँ ,  शिल्प का तो ज्ञान नही है पर बात तो मै भी समझ नहीं पाया । प्रयास के लिये आपको बधाई ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 6:09pm

सिरहाने बैठने को कहता तो क्या उचित होता ? कहानी अपनी बात स्पष्टता से नहीं कह पा रही है . सादर ,.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
19 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
24 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
30 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service