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2122 2122 2122 212
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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला

एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका

खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा

माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना

शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से और दिल को तोड़ना

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 14, 2015 at 10:53am
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है,आपकी ग़ज़लों पर दिन ब दिन निखार आता जा रहा है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Shyam Narain Verma on April 14, 2015 at 10:36am

बहुत  ही सुन्दर प्रस्तुति  //हार्दिक बधाई आपको 

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