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2122 2122 2122 212
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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला

एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका

खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा

माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना

शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से और दिल को तोड़ना

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 6:39pm

आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 4:47pm

आदरणीय कटारा साहब, गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल पर बढ़िया काम हुआ है, सभी अशआर पसंद आए, बधाई प्रेषित है, सादर.

Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 4:33pm

आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता है   आदरणीय Nidhi Agrawal जी शुक्रिया

Comment by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:37pm

आदरणीय उमेश जी .. बहुत सुन्दर गजल हुई .. 

एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका  - मस्त कहा है 

माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना  - एकदम सच और सटीक 

वाह वाह और वाह 

Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 1:10pm

आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता हैKewal Prasad आदरणीय  जी शुक्रिया

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 1:03pm

आ0   कटारा भाईजी, अच्छी गजल हुई है. टन्कण में त्रुटि हुइ है, //एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूठते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका// ....मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं .

Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 12:25pm

आदरणीय   Shyam Narain Verma  जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 12:25pm

आदरणीय   Samar kabeerजी शुक्रिया

Comment by umesh katara on April 14, 2015 at 12:24pm

आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता है आदरणीय  shree suneel     जी शुक्रिया

Comment by shree suneel on April 14, 2015 at 11:06am
आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा..
या फिर
खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा"
बेहतरीन.. भा गएे ये अशआर. बधाई आपको आदरणीय.

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