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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला

एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका

खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा

माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना

शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से और दिल को तोड़ना

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by umesh katara on April 23, 2015 at 8:42am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिय के लिये तहेदिल से आभार प्रस्तुत करता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 9:14pm

आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला

एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका

आदरणीय उमेश कटारा जी.. इस ग़ज़ल प्रस्तुति पर आपको दिल से दाद दे रहा हूँ.

Comment by umesh katara on April 16, 2015 at 9:05pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार

Comment by umesh katara on April 16, 2015 at 9:04pm

आदरणीय वीनस केसरी जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार

Comment by वीनस केसरी on April 16, 2015 at 12:48am

अच्छी ग़ज़ल हुई है ...
दाद कुबूल फरमाएं ..

मुझे लगता है कुछ मिसरों को और रवां किया जा सकता है ...
अगर ऐसा हो तो अशआर खिल उठें ..

Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 11:04pm

आ. उमेश  कटारा  जी , बहुत सुन्दर , बधाई  सादर !

Comment by umesh katara on April 15, 2015 at 8:07pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 5:04pm

  आओ कटारा जी

आख़री शेर ने तो जान ही ले ली . बहुत अच्छा . आदर .

Comment by umesh katara on April 15, 2015 at 8:31am

आदरणीय  krishna mishra 'jaan'gorakhpuriजी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 14, 2015 at 11:03pm

शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से और दिल को तोड़ना     वाह!

क्या बात है उमेश सर! गजल में शब्दों का प्रवाह देखते ही बन रह रहा है!हार्दिक बधाईयां!

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