१ २ २ २ १२ १ २२२
बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥
किसे कहते कि बेवफा है वो ,
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,
अचानक सामने जो आया है ॥
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥
कहाँ होशो-हवास की बातें ,
किसी पे जब शबाब आया है ॥
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नजील जी ..आपसे पहली बार परिचय हुआ ...आपके प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद। भाई जी मैं गुनीजनो की सलाह पर ही ध्यान दे रहा हूँ । आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी हौसला देने के लिए हार्दिक आभार। ।
आदरणीय नज़ील भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । जानकारों की सलाहों का खयाल कीजियेगा ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई जी बहुत बहुत धन्यवाद । आप जैसे गुणीजनों की की सोहबत में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जो शेयर बेबह्र है उसको सुधारने की कोशिश करता हूँ । हार्दिक आभार ।
आदरणीय नाज़िल जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई .... शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
मैं भी आदरणीया राजेश दीदी से सहमत हूँ बड़ी मुश्किल कर लीजिये
ये शेर बेबह्र हो रहा है -
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥....... पसीने से कोई नहाया है / पसीने से कि जो नहाया है (बह्र-१२२ २ १२ १२२ २)
सादर
मतला अच्छा है पर बड़ी मुश्किल कर लीजिये
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥ ---सुन्दर शेर है
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥ ----हमारे लिए होता है हमारे के लिए नहीं ---हमारे वास्ते बनाया है कर सकते हैं
कुछ वक़्त और मांगती है ग़ज़ल
अंतिम शेर में ये करिंदा क्या है ? मैं समझ नहीं पाई
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