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ग़ज़ल :- तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है
ख़ुद अपना घर जलाकर हँस रहा है

बड़े लोगों की बातें भी बड़ी हैं
लगा,जैसे समन्दर हँस रहा है

सलीक़ा मन्द रो देते हैं जिस पर
तू ऐसी बात सुन कर हँस रहा है

बुराई का बुरा अंजाम होगा
फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है

नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर
कोई बर्बाद होकर हँस रहा है

समझ लेना क़यामत आ गई है
अगर देखो,सुख़न्वर हँस रहा है

मिरी बर्बादियों पर ख़ुश है इतना
वो दिल पर हाथ रखकर हँस रहा है

विदाई हो गई बेटी की शायद
तभी मज़दूर खुलकर हँस रहा है

इसी दिन की दुआऐं माँगता था
मिरी क़ीमत लगाकर हँस रहा है

कभी "मारूफ़" को हँसता जो देखूँ
लगे,माह-ए-मुनव्वर हँस रहा है

"समर",ग़ैरत दिलाओ फ़ौजियों को
उधर दुश्मन का लश्कर हँस रहा है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 797

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Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:25pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:24pm
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 9:32pm

आदरणीय समर कबीर भाई , हमेशा की तरह एक बेमिसाल गज़ल से रू ब रू कराया आपने , वाह !! क्या बात है !! दिली मुबारक बादें हाज़िर हैं , कुबूल कीजिये ॥

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2015 at 8:33pm

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद क़ुबूल करें

एक पंक्ति में "टाईपिंग मिस्टेक" है ...

फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है

शायद पंक्ति इस प्रकार है = फ़क़ीरों पर अगर तू हँस रहा है

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 8:32pm
नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर
कोई बर्बाद होकर हँस रहा है ॥
बहुत खूब , सुन्दर ग़ज़ल बनी,आदरणीय समर कबीर साहब , बधाई,सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 8:08pm
आदरणीय समर कबीर जी आपकी गज़लें बेहतरीन होती है। ये ग़ज़ल भी उम्दा और बेहतरीन है। आपकी ग़ज़लों से कुछ न कुछ नया सीखने मिल जाता है। हार्दिक आभार इस प्रस्तुति पर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 10:27am

विदाई हो गई बेटी की शायद
तभी मज़दूर खुलकर हँस रहा है

इसी दिन की दुआऐं माँगता था
मिरी क़ीमत लगाकर हँस रहा है

सुन्दर  गज़ल पर दिली दाद हाजिर है! आदरणीय!

Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2015 at 10:05am
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 9:52am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. समीर साहब, दाद कुबूलें

Comment by umesh katara on April 7, 2015 at 9:51am

waaaaaaaaaaaaah

वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह

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