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ग़ज़ल -- प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही -- ( गिरिराज भंडारी )

२११२२        २११२२         २११२      

प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही

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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही

ख्वाब तो हो, सच्चा न सही  मुबहम ही सही

 

लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत

आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही 

 

मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो    

धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही

 

कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी 

काँटों लदी हो डाल खिले कम कम ही सही

 

तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर

कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही

 

है तो फिरी दुनिया की नज़र चल मान लिया 

मेरी वफ़ा कायम है अगर कायम ही सही

 

ता कि ये हथकड़ियाँ भी शिकायत कर न सके 

जब न कलाई कोई जँची, तो हम ही सही  

****************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

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Comment by दिनेश कुमार on April 5, 2015 at 9:38am
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज सर जी। वाह वाह। मेरी तरफ से भी ढेरों दाद व मुबारकबाद सर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 9:46pm

आदरणीय नीरज भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 9:46pm

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई के लिये दिली शुक्रिया ।

Comment by Neeraj Neer on April 4, 2015 at 6:16pm

वाह वाह आदरणीय क्या खूब .... ख्वाब तो हो, सच्चा न सही  मुबहम ही सही .... बिना ख्वाब के भी क्या जीवन ॥ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2015 at 2:54pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..हर ग़ज़ल में एक ताजगी होती है ..इस बेहतरीन रचना के लिए हादिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 12:27pm

आदरणीय उमेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥

Comment by umesh katara on April 4, 2015 at 8:15am

तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर

कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
हर शेर पर वाह निकले सर वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 7:11am

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥ आपको इस बह्र पर काम करते पढ़ के बहुत खुशी हुई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 7:09am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपसे तारीफ पाके गज़ल मुकम्मल हुई , आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 7:08am

आअदरणीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

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