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ग़ज़ल :- उजाला काटने को दौड़ता है |

बह्र :-फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन

दिवाना पन नहीं तो और क्या है
उजाला काटने को दौड़ता है

यही छोटा सा घर दुनिया है मेरी
इसी का नाम जन्नत रख दिया है

मैं भूका हूँ मुझे रोटी खिला दो
कोई साइल गली में चीख़ता है

मैं सच्चाई के पैरों पर खड़ा हूँ
मुक़ाबिल झूट के सर पर खड़ा है

सभंल कर ए दिल-ए-नादाँ सभंल कर
तू किन ऊंचाईयों को छू रहा है

वहीं से रोशनी फूटी है यारो
जहाँ मेरा सितारा डूबता है

"समर" दिल आपने तोड़ा है जबसे
अजब हमदर्दियों का सिलसिला है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Nazeel on April 1, 2015 at 10:49am

आदरणीय समर कबीर जी बेहद  रचना  हार्दिक बधाई।  आपकी  रचनाओं  से बहुत कुछ  सिखने को मिलता है  , एक बार फिर से दिली दाद क़ुबूल फरमाये |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:42am
बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ. समर साहब। दिली दाद कुबूल कीजिए
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:34am
आली जनाब डॉ.गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,आप जैसे विद्वान की शिर्कत ग़ज़ल में हुई हौसला बढ़ गया,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:28am
जनाब निलेश "नूर" जी,,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:27am
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,आप ख़ुद अच्छा लिखते हैं,और जो ख़ुद अच्छा होता है वो सब को अच्छा समझता है, ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:20am
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:17am
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:14am
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:10am
जनाब लक्ष्मण धामी जी,आदाब ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:07am
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,ग़ज़ल में आप की शिर्कत हो गई मेरे लिये इतना ही काफ़ी है,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |

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