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कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है
मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है.
.
झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम
अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.
.
शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा
उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है.
.
जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,
उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.
.  
आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर
शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.
.
मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.  
.
लोग भला समझेंगे इस रिश्ते को क्या
‘नूर’ इसे गुमनाम छुपाकर रक्खा है.
.
नूर 

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 679

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:48pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:45pm

मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.  ... .  ग़ज़ब !

लोग भला समझेंगे इस रिश्ते को क्या
‘नूर’ इसे गुमनाम छुपाकर रक्खा है. ..........  हाथ से छू न देना..

दाद कुबूल करें, आदरणीय..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2015 at 12:54pm

शुक्रिया आ. जितेन्द्र भाई ..पुन: सक्रीय होने की कोशिश में हूँ 
सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 11:25am
मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है....वाह! क्या कहने. बहुत उम्दा, दिली दाद कुबुलें आदरणीय निलेश जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2015 at 9:04am

शुक्रिया आ. सेठी साहब.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 27, 2015 at 7:06am

वाह ...हर शेर लाजवाब ...बधाई ...सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:47pm

शुक्रिया आ. भंडारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:46pm

शुक्रिया मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2015 at 11:28pm

मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.   ------ लाजवाब !! गज़ल के लिये और इस शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 9:37pm

आदरणीय निलेश जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है.... हार्दिक बधाई.... काम और राम काफिया वाले अशआर कमाल के है.

कृपया ध्यान दे...

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