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ये समझना तू बेनज़ीर हुआ

2122 1212 112/22

जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ

लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ

 

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ

 

जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ

ये खबर है कि मैं फकीर हुआ

 

बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़

सो निशाने पर अब के तीर हुआ

 

तंग हाली ज़बाँ से झाँके है

कौन कहता है वो अमीर हुआ

(मुशीर-सलाहकार,  असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 18, 2015 at 10:04pm

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ        वाह वाह ! क्या कहने इस शेर के!

तंग हाली ज़बाँ से झाँके है

कौन कहता है वो अमीर हुआ     बहुत ख़ूब!

सुन्दर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाईयां आदरणीय शिज्जू सर जी!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:47pm

आदरणीय शिज्जु सर , बहुत खूब, हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर , 

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ....सुन्दर  

जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ

ये खबर है कि मैं फकीर हुआ....वाह , सादर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 8:45pm

शिज्जू भाई

सदाबहार  . हमेशा की तरह  . सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 8:36pm

आदरणीय शिज्जु  जी . सुन्दर रचना के लिए दिल से बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 8:07pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 8:02pm
ग़ज़ल बहुत अच्छी है , यह कुछ और अच्छा लगा ,
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ ॥
बधाई , आदरणीय , शिज्जु शकूर जी ,

कृपया ध्यान दे...

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