For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्रृंगारिक ग़ज़ल - कमसिन उमरिया

212 212 212 212

 

कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी

दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी

 

ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी 

नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी

 

फूल बन के खिली गुलबदन ये कली 

आरजू फिर महक की जवां हो गयी

 

प्यार की बात हमने छुपाई बहुत

लोग सुनते रहे दासतां हो गयी

 

होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए

कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी

 

दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”

आज मन की जमीं आसमां हो गयी 

निधि 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1290

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on March 21, 2015 at 9:00am

अच्छी गजल कही है 

वाह वाह निधि अग्रवाल जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 20, 2015 at 5:28pm

आदरणीया निधि जी ..इस सुंदर रचना के लिए तहे दिल बधाई ..आपकी रचना पर हुए बिचार विमर्श से काफी कुछ सीखने को मिला ..सादर 

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 12:27pm

मित्रों .. हमनवा को बदलकर शेर बनाना चाहा लेकिन नहीं बन पाया 

अजनबी तुमने देखा मुझे इस तरह

चांदनी चाँद की मेहमां हो गयी 

चांदनी चाँद की निगहबां हो गयी 

किस कदर प्यार की इंतहां हो गयी 

वगैरह सोचा लेकिन या तो लफ्ज गलत है या बह्र .. इसलिए शेर ही हटा दिया है ..लेकिन शेर बहुत बढियां बन पड़ा था .. इसलिए  उस शेर का इस्तेमाल कर के एक नयी गजल पेश करने की कोशिश करुँगी 

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 9:50am

सभी आदरणीय मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद.. मेरी इस अदना सी ग़ज़ल को इतनी सार्थक चर्चा के लायक समझा यह देख कर अभिभूत हूँ ..बड़ी मुश्किल से ग़ज़ल सीखने की कोशिश कर रही हूँ .. इस मंच पर भी ग़ज़ल की कक्षा खींच लायी.. शायरी के मामले में अभी कच्चा निम्बू हूँ ..इसलिए संभाल लीजियेगा 

आदरणीय सौरभजी और निर्मल जी ..उमरिया और हमनवा आम बोलचाल और खासकर कविताओं में कई बार देखने में आता है बस इसीलिए इन शब्दों का उपयोग हुआ..अगर ये सही नहीं हैं तो मैं कोशिश करती हूँ की इन्हें सही उर्दू लफ्जों से बदल दूँ .. 

निर्मल जी .. आपकी बात सही है की इसे हिंदी ग़ज़ल नहीं माना जा सकता क्योकी उर्दू लफ्जों का इस्तेमाल बहुतायत से हुआ है 

और यह सच है उमरिया हिंदी का शब्द है और उर्दू से कोई लेना देना ही नहीं है पर मिसरे में बहुत अच्छी तरह से घुलमिल गया, बस यही वजह है 

आदरणीय विजय जी .. बहुत ख़ुशी हुई आपकी बात समझकर .. आगे से ये गलती नहीं होगी 

आप सभी महानुभावों का फिर से बहुत बहुत आभार 

यह मंच सही मायनों में साहित्यिक चर्चा करता है .. जो बातें पिछले चार सालों में फेसबुक पर नहीं सीखीं वो पिछले दो हफ़्तों में यहाँ सीख गयी ..बड़ी बात है .. आप सभी साहित्यिक मित्रों का सहयोग हुआ तो अगले साल इसी दिन किसी कठिन बह्र पर ग़ज़ल पोस्ट करुँगी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 20, 2015 at 1:43am

भाई निर्मलजी , आपको अपनी बातें प्रस्तुत करने का पूरा हक है. किन्तु मैं भी रवायती ग़ज़लो का बहुत बड़ा पक्षधर नहीं हूँ. अलबत्ता, ग़ज़ल की विधा से अत्यंत प्रभावित हूँ.

यह अवश्य है कि हमनवां शब्द नहीं है.

भाई एक निवेदन है, आप मुझे मेरे प्रथम नाम से ही पुकारें. इस बात पर आइन्दा ध्यान रखियेगा. 

सादर

Comment by Nirmal Nadeem on March 19, 2015 at 11:58pm
आदरणीय पाण्डेय जी आपकी बात से सहमत हूँ । यह ग़ज़ल अगर उर्दू की है तो यह शब्द बहुत अच्छा नही है चल जायेगा। जहाँ तक बात आपने हिंदी ग़ज़ल की की है तो यह ग़ज़ल मैं हिंदी की नहीं मान सकता।

अब एक चीज़ और कहना चाहूँगा

शब्द हमनवा होता है न कि हमनवां। इस लिहाज़ से वह शेर क़ाफ़िए की वजह से इस ग़ज़ल में नहिं रखा जा सकता।सादर सस्नेह।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 19, 2015 at 10:59pm

आदरणीय निर्मल नदीमजी, इस ’उमरिया’ शब्द को सभी पाठकों ने देखा होगा जिन्होंने इस ग़ज़ल को पढ़ लिया है.
’उमरिया’ उर्दू ग़ज़लों में अमान्य अवश्य होगा. 'शहर' का वज़न उर्दू शब्दों की ग़ज़लों में २ १ होगा. किन्तु, हिन्दी शब्दों को प्रयुक्त करती प्रस्तुतियों और ग़ज़लों में ऐसी कोई विवशता नहीं हुआ करती है.
यह अवश्य है कि 'उमरिया' जैसे शब्दों को निबाहने की कला और लालित्य ग़ज़लकार में आवश्यक है.

Comment by Nirmal Nadeem on March 19, 2015 at 9:53pm
बहुत खूब वाह वाह वाह वाह

हर शेर के लिए दाद। मुबारक हो।

मेहरबां का वज़न 212 ही होता है टाइपिंग अलग हो सकती है। जैसे शहर का वज़न 21 होता है लेकिन टाइपिंग में 12 आता है।
आदरणीया निधि साहिबा ने जो मिसरा सुधार कर लिया वह बहुत ही अच्छा है।

तमाम दोस्तों ने अपनी राय दे दी है। सार्थक भी है और महत्वपूर्ण भी।

शब्द उमरिया पर ध्यान चाहता हूँ जहाँ तक मेरा ख़याल है यह एक देशज शब्द है जो ग़ज़ल के लिहाज़ से बहुत अच्छा नहीं है । सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 8:48pm
आदरणीय सुश्री निधि जी ,मैं प्रयास करूँ। श्र और शृ दोनों ही ( तालव्य sa ) श से व्युतपन्न हैं। श और ग्रह वाला र मिल कर श्र बनाते हैं और श और गृह वाला र मिल कर शृ बनाते हैं। श्र से श्री बनता है, शृ से शृंगार बनता है।
कृपया अन्यथा न लें। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 19, 2015 at 8:34pm

आदरणीया निधि जी रचना बहुत अच्छी है, कुछ सार्थक चर्चायें भी हुई हैं। इस रचना के लिये बधाई।
आदरणीया राजेश दीदी मेहरबां जैसे भी कहा जाये वज्न तो 212 ही होगा मेह्2 र1 बां2

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
25 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
31 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सम्माननीय ऋचा जी । बहुत बहुत आभार"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। आदरणीय ग़ज़ल तक आने व बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के।लिए सादर"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service