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रात की रानी : नवगीत : हरि प्रकाश दुबे

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,

पर उसको चोट लगी है भारी ,

लौटा दो फिर से उसकी हँसी,

उसे धीरे से गुदगुदाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

तरह - तरह के मर्ज पड़े है,

जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,

पीड़ा कम हो जाए उनकी,

ऐसा मरहम लगाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

कुछ लोगों का रोग है भारी,

असाध्य है उन सबकी बीमारी,

देखी नहीं जाती अब लाचारी,

उन्हें भी रोशन कर जाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

कुछ के मन में सूनापन है

दुर्गन्ध भरा उनका जीवन है

जीने की अब चाह नहीं है 

उन्हें रोज-रोज महकाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

मौत के मुहँ में पढ़ी जिंदगी

अंतिम साँसे मांग रही है

मौत से लडती जिंदगी को

अमरत्व से भर जाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

देखो जा रही है एक अरथी,

लिए साथ में चार सारथी,

तुम तो कन्धा दें नहीं सकती

उसपर फूल ही बरसाया करो

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!  

 

 

तुमको काट दिया लोगों ने

जड़ से उखाड़ दिया लोगों ने

तुम भी अमरबेल बनकर

बार-बार  उग जाया करो !!

 

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:37pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी, रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:35pm

आदरणीय मोहन सेठी जी, रचना के समर्थन एवं उत्साह भरी प्रतिक्रया के लिए आपका  हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:31pm

आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पर आपका हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:34pm

 भाई कृष्णा  मिश्र जी आपकी उत्साह भरती प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 12:08pm

अनुपम  रचना  के लिए  बधाई  श्री हरी प्रकाश  दुबे  जी  

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 11:18am

रात की रानी जैसा आशापूर्ण नवगीत कोई सहृदय राजा ही लिख सकता है |रात की रानी के माध्यम से अस्पताल में नई खुशबू फ़ैलाने के इस सद्प्रयास पर साधुवाद |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 10:09am

आदरणीय हरिप्रसाद जी एक अलग तरह की रचना है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 6:11am

आपकी प्रस्तुति के माध्यम से एक नये अनुभव से गुजरने का मौका मिला. हार्दिक बधाई, आदरणीय..

Comment by Hari Prakash Dubey on March 17, 2015 at 10:53pm

आदरणीय इं. " बागी" सर, आपका विश्लेषण बिलकुल सही है , रचना अभी दो  दिनों पहले अस्पताल में ही जन्मी है ,किसी को देखने गया  था , आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभार ! सादर  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 17, 2015 at 10:10pm

एक अलग प्रकृति की रचना जन्म ली है, शायद अस्पताल में ही, बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी.

कृपया ध्यान दे...

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