2122 1212 22
रोज किसके यहाँ तू* जाता है,
राज अब कौन सा छुपाता है !!
है इमां साथ में अगर तेरे,
साथ वो दूर तक निभाता है !!
जब रहे साथ साथ हम दोनों
प्यार का गीत तब ही* भाता है !!
देखता हूँ अजीब से सपने,
नीद को कौन आ चुराता है !!
आज बनना सभी को* है टाटा,
ख्व़ाब बुनना तो सबको* आता है !!
शोक इतने नहीं किया करते,
बस यही जिंदगी का* नाता है !!
लालसा मत करो कभी इतनी ,
क्योकि कोई बड़ा न दाता है !!
"मौलिक व अप्रकाशित"
** आलोक **
मथुरा
Comment
आदरणीय Shyam Mathpal जी....दिल से आपका आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी....बहुत बहुत आभार आपका ..
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी....बहुत बहुत आभार आपके सुभाव का ..जरूर में इसे सही कर लूँगा आदरणीय
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी...बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीय maharshi tripathi जी....दिल से आपका बहुत आभार
Aadarniya Alok Mittal ji,
Sundar rachna ke liye badhai.
आदरनीय आलोक भाई , छोटी बहर मे6 अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय मिथिलेश भाई जी की बात मुझे भी सही लग रही है , फ्लो जियादा सही लग रहा है ॥
आदरणीय आलोक मित्तल जी ,सुन्दर रचना ,बधाई आपको !
सुन्दर प्रयास है .
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